15 हजार साल से छुपे हैं 'मौत के वायरस', पिघलते बर्फ से होंगे आजाद, मचा सकते हैं तबाही, वैज्ञानिकों की चेतावनी!

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धरती के नीचे कई राज दफन हैं. कभी पुरानी सभ्यताओं का खुलासा होता है, तो कभी दैत्याकार जीवों के बारे में उनके जीवाश्म से जानकारी मिलती है. लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने 28 ऐसे वायरसों को ढूंढ निकाला, जिनके बारे में किसी को कुछ भी जानकारी नहीं है. हो सकता है कि ऐसे वायरस हमारे वातावरण के लिए महत्वपूर्ण हों या फिर धरती पर इंसानों की तबाही का सबब भी बन जाएं. साइंटिस्ट्स की मानें तो जिस तरह जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण बर्फ पिघल रहे हैं, वैसे में उनके अंदर छुपे हजारों साल पुराने खतरनाक वायरस भी बाहर आ सकते हैं. ये दुनिया के लिए खतरनाक भी साबित हो सकते हैं. इससे जुड़ी रिपोर्ट जर्नल माइक्रोबायोम में प्रकाशित हुई है. इसके लिए तिब्बती पठार की गुलिया बर्फ की टोपी से दो बर्फ के नमूनों का विश्लेषण किया गया था.

अध्ययन का नेतृत्व करने वाले अमेरिका के ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट ज़ी-पिंग झोंग (Zhi-Ping Zhong) ने बताया कि ये ग्लेशियर धीरे-धीरे बने थे. ऐसे में धूल और गैसों के साथ-साथ उस बर्फ में कई वायरस भी जम गए थे. हाल ही में हुई स्टडी में पता चला कि बर्फीले तिब्बती ग्लेशियरों के अंदर दर्जनों प्रागैतिहासिक वायरस फंसे हुए पाए गए हैं. वैज्ञानिकों ने अपने बर्फीले नमूनों को रोगाणुरहित रखने के लिए मेटागेनोमिक्स (एक प्रकार का जीन विश्लेषण) तकनीक का इस्तेमाल किया था. इस तकनीक से शोधकर्ताओं को यह समझने में भी मदद मिलती है कि ये वायरस वास्तव में किस चीज से बने हैं?

2021 में की गई इस स्टडी में कुल 33 वायरसों की पहचान की गई, जिसमें से 28 बिल्कुल नए प्रकार विषाणु थे. शोधकर्ताओं ने बताया कि बर्फ पिघलने से न केवल प्राचीन और संग्रहीत रोगाणुओं के साथ-साथ वायरस नष्ट हो जाएंगे, बल्कि वे पर्यावरण में भी मुक्त हो जाएंगे. अर्थ साइंटिस्ट लोनी थॉम्पसन ने बताया कि ये वायरस चरम वातावरण (Extreme Environment) में पनपे हैं, ऐसे में इनके बारे में हमारे पास बहुत कम जानकारी है. ये पिछले 15,000 वर्षों से बर्फ के नीचे दबे हुए हैं.

चूकि इनकी प्रकृति का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, ऐसे में कोविड महामारी के बाद प्राचीन वायरस का हमारे वातावरण में आना चिंताजनक हो सकता है. विशेषज्ञ पहले भी पिघले ग्लेशियरों से निकलने वाले वायरस के खतरे की ओर इशारा कर चुके हैं. बीबीसी फ्यूचर के एक आर्टिकल में कहा गया है, “जलवायु परिवर्तन हजारों वर्षों से जमी हुई पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी को पिघला रहा है, और जैसे-जैसे मिट्टी पिघलती है, वे प्राचीन वायरस और बैक्टीरिया छोड़ रहे हैं, जो निष्क्रिय होने के कारण वापस जिंदा हो रहे हैं.”

शोधकर्ताओं ने नोट किया कि बर्फ की परतें एक समयरेखा में बनती जाती हैं. इस दौरान प्रत्येक परत अलग-अलग रोगाणुओं, वायरस और गैसों को फंसाती है. बेशक, वैज्ञानिक इन खोजों से काफी ज्यादा उत्सुक हैं, लेकिन यह तथ्य भी चिंताजनक है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे ये खोजें हो रही हैं. बर्फ पिघलने से मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी छिपी हुई ग्रीनहाउस गैसों का भारी भंडार निकलता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है.

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