![डबल इंजन वाली ट्रेन में कितने ड्राइवर होते हैं? 1 pic](https://navbharattimes.indiatimes.com/photo/msid-99953456,imgsize-123/pic.jpg)
कितने ड्राइवर होते हैं
![डबल इंजन वाली ट्रेन में कितने ड्राइवर होते हैं? 2 कितने ड्राइवर होते हैं](https://static.langimg.com/thumb/76874587/Navbharat Times.jpg?width=540&height=405&resizemode=75)
कुछ लोग सवाल पूछते हैं कि डबल इंजन या लोकोमोटिव वाली ट्रेन में दोनों लोको में ड्राइवर बैठते हैं? आपको बता दूं कि दो इंजनों से चलने वाली ट्रेन के एक ही इंजन में ड्राइवर बैठते हैं। उस इंजन के ड्राइवर कैब एक तो लोको पायलट (Loco Pilot) होता है और दूसरा असिस्टेंट लोको पायलट (ALP)। यहां एक और सवाल उठता है कि ड्राइवर कौन से इंजन में बैठते हैं? जाहिर है कि जो इंजन आगे होगा, ड्राइवर उसी इंजन में बैठेंगे। उसी इंजन में बैठ कर ड्राइवर दूसरे इंजन को भी कंट्रोल करते है। साथ ही पूरी ट्रेन का कंट्रोल भी उनके हाथ में रहता है।
कब हुई डबल इंजन की शुरुआत
![डबल इंजन वाली ट्रेन में कितने ड्राइवर होते हैं? 3 कब हुई डबल इंजन की शुरुआत](https://static.langimg.com/thumb/76874587/Navbharat Times.jpg?width=540&height=405&resizemode=75)
भारत में डबल इंजन की शुरुआत स्टीम इंजन के जमाने से ही हो गई थी। 1950 और 1960 के दशक में ट्रेनें छोटी होती थीं। अधिकतर ट्रेन पांच या छह डिब्बे के होते थे। कुछ ट्रेन नौ या इससे ज्यादा डिब्बे के भी होते थे। ऐसे ट्रेनों में ही डबल इंजन लगाया जाता था। दरअसल, उस जमाने में हमारे स्टीम इंजन 1250 हार्सपावर के होते थे। इसलिए लंबी ट्रेनों में दो इंजन जोड़ा जाता था। इसी तरह लंबी मालगाड़ी में भी दो इंजन लगाए जाते थे।
डीजल इंजन में भी जरुरत पड़ी
![डबल इंजन वाली ट्रेन में कितने ड्राइवर होते हैं? 4 डीजल इंजन में भी जरुरत पड़ी](https://static.langimg.com/thumb/76874587/Navbharat Times.jpg?width=540&height=405&resizemode=75)
भारत में जब शुरु में डीजल इंजन आए तो दो उसकी क्षमता करीब 2000 हार्सपावर की थी। इसलिए दो स्टीम इंजन लगाने की आवश्यकता नहीं रही। लेकिन बाद में ट्रेनें और लंबी होती गई। कुछ ट्रेन 18 डिब्बे वाले हो गए। इसी तरह के ट्रेनों में दो डीजल इंजन लगाए जाते थे। इसी तरह की ट्रेन में पटना राजधानी और पूर्वा एक्सप्रेस वाया पटना थी। दिल्ली से जाने पर इन ट्रेनों में तत्कालीन मुगलसराय जंक्शन पर इलेक्ट्रिक इंजन काट कर डीजल से चलने वाले दो इंजन जोड़े जाते थे।
इलेक्ट्रिक इंजन में जरुरत नहीं पड़ती?
![डबल इंजन वाली ट्रेन में कितने ड्राइवर होते हैं? 5 इलेक्ट्रिक इंजन में जरुरत नहीं पड़ती?](https://static.langimg.com/thumb/76874587/Navbharat Times.jpg?width=540&height=405&resizemode=75)
इलेक्ट्रिक इंजन की क्षमता काफी है। अभी 5000 से 12000 हार्सपावर के इलेक्ट्रिक इंजन चल रहे हैं। इसलिए इनमें दो इंजन लगाने की जरुरत नहीं रह गई है। लेकिन अभी भी घाट सेक्शन या मालगाड़ियों में डबल इंजन लगाने की जरुरत पड़ती है। ताकि मौजूदा डिब्बोंं को कम किए बिना ढुलाई क्षमता बढ़ाई जा सके।
मल्टीपल यूनिट कहलाते हैं ऐसे इंजन
![डबल इंजन वाली ट्रेन में कितने ड्राइवर होते हैं? 6 मल्टीपल यूनिट कहलाते हैं ऐसे इंजन](https://static.langimg.com/thumb/76874587/Navbharat Times.jpg?width=540&height=405&resizemode=75)
लोकोमोटिव में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आगमन के बाद से, इंजीनियरों ने “मल्टीपल यूनिट” ऑपरेशन या संक्षेप में एमयू को आजमाना शुरू किया। एमयू ने लोकोमोटिव (डीजल और इलेक्ट्रिक) को लोकोमोटिव के समान मॉडल को जोड़ने की आजादी दी। किसी ट्रेन में डबल, ट्रिपल या 4 इंजन तक जोड़े जाने की अनुमति दी। अभी जो पायथन ट्रेन चली थी, उसमें चार इंजन लगे थे।
मास्टर लोको में बैठते हैं ड्राइवर
![डबल इंजन वाली ट्रेन में कितने ड्राइवर होते हैं? 7 मास्टर लोको में बैठते हैं ड्राइवर](https://static.langimg.com/thumb/76874587/Navbharat Times.jpg?width=540&height=405&resizemode=75)
मल्टीपल यूनिट वाले ट्रेन में सबसे आगे वाला इंजन मास्टर लोकोमोटिव कहलाता है। उसके पीछे लगने वाला लोकोमोटिव स्लेव लोको कहलाता है। ट्रेन के ड्राइवर या लोको पायलट मास्टर लोको में बैठते हैं। स्लैव इंजन में कोई ड्राइवर नहीं बैठते। वह आगे वाले इंजन या मास्टर लोको से नियंत्रित होते हैं।
कैसे कंट्रोल किया जाता है स्लेव लोको को
![डबल इंजन वाली ट्रेन में कितने ड्राइवर होते हैं? 8 कैसे कंट्रोल किया जाता है स्लेव लोको को](https://static.langimg.com/thumb/76874587/Navbharat Times.jpg?width=540&height=405&resizemode=75)
मास्टर और स्लेव लोकोमोटिव एक केबल के माध्यम से जुड़े होते हैं। इस केबल को B C D जंपर्स कहा जाता है। ये मास्टर से स्लेव लोको तक ऑपरेशन कमांड को स्थानांतरित करने के लिए आवश्यक विद्युत संकेतों को ले जाते हैं। इन केबलों को MU केबल भी कहा जाता है। जहां तक ब्रेक लगाने की बात है तो स्लेव लोको भी ब्रेक पाइप के जरिए मास्टर लोको से जुड़ा होता है। लोकोमोटिव में इनबिल्ट कंप्यूटर मास्टर लोकोमोटिव से सिग्नल प्राप्त करता है और तदनुसार थ्रॉटल को बढ़ाता/घटता है। ट्रांसफॉर्मर में टैप बदलता है या स्लेव लोको में ब्रेक लगाता है। कमांड का ट्रांसफर तात्कालिक होता है और इसमें कोई देरी नहीं होती है।