शराब पीने वालों को जरा ‘दुआएं’ दीजिए, क्यों? जरा सरकार के खर्चे-पानी का यह हिसाब देखिए


नई दिल्ली: शराब पीना सेहत के लिए अच्छा नहीं माना है और अपने देश में जब तब इस पर बैन लगाने की बात उठती रहती है। मगर सच तो यह है कि देश की इकॉनमी में इसकी अहम भूमिका है। कई राज्यों की कमाई में एक्साइज यानी शराब की बिक्री पर मिलने वाले टैक्स का अहम हिस्सा है और इसकी हिस्सेदारी लगातार बढ़ रहा है। साल 2022-23 में राज्यों के कुल रेवेन्यू में एक्साइज की हिस्सेदारी 14.1 फीसदी पहुंचने की उम्मीद है। यानी राज्यों को होने वाली हरेक सात रुपये की कमाई में एक रुपया एक्साइज से आता है। कई राज्यों के रेवेन्यू में एक्साइज ड्यूटी की हिस्सेदारी 20 फीसदी से ज्यादा है। अगर इस टैक्स को हटा दिया जाए तो राज्यों को सामाजिक सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च के लिए उधार लेना पड़ेगा या पेंशन आधी करनी पड़ेगी। जीएसटी (GST) और पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले वैट (VAT) के बाद राज्य सरकारों की सबसे ज्यादा कमाई शराब से ही होती है। यही वजह है कि कोरोना का प्रकोप कम होने के बाद सरकार ने सबसे पहले शराब के ठेके खोले।

कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल के कुल रेवेन्यू में एक्साइज की हिस्सेदारी 20 फीसदी से अधिक है। राजधानी दिल्ली में सरकार के कुल रेवेन्यू में शराब की बिक्री पर लगने वाले टैक्स का हिस्सा 19.9 फीसदी है। 20 बड़े राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल रेवेन्यू में एक्साइज ड्यूटी की हिस्सेदारी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2013-14 में राज्यों के रेवेन्यू में एक्साइज ड्यूटी की हिस्सेदारी 11.4 फीसदी था जिसके 2022-23 में बढ़कर 14.1 फीसदी पहुंचने की उम्मीद है। 2022-23 में राज्यों की जीडीपी में एक्साइज ड्यूटी की हिस्सेदारी करीब एक फीसदी होगी जो 2013-14 में यह 0.72 फीसदी थी।

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किस राज्य की सबसे ज्यादा कमाई

आंकड़ों के मुताबिक अल्कोहल पर एक्साइज ड्यूटी में सालाना 13.3 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई है जबकि इस दौरान दूसरे स्रोतों से रेवेन्यू में 12.1 फीसदी की तेजी आई है। पिछले साल जब दिल्ली की सरकार ने नई शराब नीति को घोषणा की थी तो उसने उम्मीद जताई थी कि हर पांच रुपये के रेवेन्यू में एक रुपया एक्साइज ड्यूटी से आएगा। 2022-23 में एक्साइज ड्यूटी के 9,500 करोड़ रुपये पहुंचने की उम्मीद थी। एक्साइज ड्यूटी में केवल खपत बढ़ने से बढ़ोतरी नहीं हुई है। उन्होंने शराब पर ज्यादा टैक्स लगाया है जिसकी वजह से 2020-21 में उन्हें रेकॉर्ड कमाई हुई।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में शराब पीने वाले लोगों की संख्या कम है लेकिन 2022-23 में उसके कुल रेवेन्यू में एक्साइज ड्यूटी का हिस्सा 22.3 फीसदी होगा। आबादी के अनुपात की बात की जाए तो शराब पीने के मामले में अरुणाचल प्रदेश सबसे आगे है। लेकिन राज्य के कुल रेवेन्यू में एक्साइज का हिस्सा केवल 12 फीसदी है। क्या शराब राज्यों के रेवेन्यू में ज्यादा योगदान दे सकती है। इस बारे में 14वें फाइनेंस कमीशन के सदस्य रहे एम गोविंदा राव ने कहा कि अगर आप शराब की कीमत बढ़ाएंगे, तब भी लोग पीएंगे। इसलिए इसमें गुंजाइश है।

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तेजी से बढ़ रहा मार्केट

इंडस्ट्री के मुताबिक अल्कोहल यानी शराब का ग्लोबल मार्केट 1448.2 अरब डॉलर का है और 2022 से 2028 के बीच इसमें सालाना 10.3 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। साल 2025 तक यह 1976 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। दुनिया में भारत का अल्कोहल मार्केट सबसे तेजी से बढ़ रहा है। अभी यह 52.5 अरब डॉलर का है। भारत का अल्कोहल मार्केट सालाना आठ फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ साल में देश शराब का प्रॉडक्शन 25 फीसदी बढ़ा है। इसकी वजह यह है कि भारत में शहरी आबादी तेजी से बढ़ रही है और साथ ही लोगों की इनकम भी बढ़ रही है।

देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग एक्साइज ड्यूटी है। अल्कोहल की पूरी सप्लाई चेन पर राज्यों का पूरा कंट्रोल है। इनमें प्रॉडक्शन से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन, रजिस्ट्रेशन और रिटेल शामिल है। यह सेक्टर विदेशी निवेश के लिए खुला है। महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य वाइन बनाने के लिए स्थानीय कंपनियों को सब्सिडी देते हैं। अल्कोहल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। यह इंडस्ट्री करीब 15 लाख लोगों को रोजगार देती है। इंडस्ट्री के अनुमान के मुताबिक साल 2015 में 21 करोड़ लोग शराब पीते थे। अब यह संख्या 30 करोड़ के ऊपर पहुंच चुकी है।



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