दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा बरी, उम्रकैद की सजा रद्द – India TV Hindi

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जी एन साईबाबा

नागपुर: बंबई हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार को माओवादी संबंध मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को बरी कर दिया है। कोर्ट ने उनकी उम्रकैद की सजा रद्द कर दी है। न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मीकि एस.ए.मेनेजेस की खंडपीठ ने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया। 

पीठ ने क्या कहा?

पीठ ने कहा कि वह सभी आरोपियों को बरी कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ संदेह से परे मामला साबित करने में विफल रहा। इसने कहा, ‘अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई कानूनी सबूत या आपत्तिजनक सामग्री पेश करने में विफल रहा है।’ पीठ ने कहा, ‘निचली कोर्ट का फैसला कानून के स्तर पर खरा नहीं उतरता है, इसलिए हम उस निर्णय को रद्द करते हैं। सभी आरोपियों को बरी किया जाता है।’ 

इसने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्राप्त मंजूरी को भी अमान्य करार दिया। हालांकि, बाद में अभियोजन पक्ष ने मौखिक रूप से कोर्ट से अपने आदेश पर 6 हफ्ते के लिए रोक लगाने का अनुरोध किया, जिससे वह सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सके।

इस पर पीठ ने रोक लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को एक आवेदन दायर करने का निर्देश दिया। हाई कोर्ट की एक अन्य पीठ ने 14 अक्टूबर, 2022 को इस बात का संज्ञान लेते हुए साईबाबा को बरी कर दिया था कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में मुकदमे की कार्यवाही अमान्य थी। 

महाराष्ट्र सरकार ने उसी दिन फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष कोर्ट ने शुरू में आदेश पर रोक लगा दी और बाद में अप्रैल 2023 में हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और साईबाबा द्वारा दायर अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया। 

शारीरिक असमर्थता के कारण व्हीलचेयर पर रहने वाले 54 वर्षीय साईबाबा 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद हैं। वर्ष 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र कोर्ट ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित पांच अन्य को दोषी ठहराया था। सत्र कोर्ट ने उन्हें यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था। (इनपुट: भाषा)

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