![Delhi Mayor: कैसे अरुणा आसफ अली बनी थीं दिल्ली की पहली मेयर 1 mcd 1677123092](https://hindi.oneindia.com/img/1200x60x675/2023/02/mcd-1677123092.jpg)
दिल्ली नगर निगम चुनाव का पहला चुनाव कब हुआ था? कितने दल मैदान में थे और कौन-कौन नेता मेयर बनने की होड़ में थे? कैसे अरुणा आसफ अली बनी दिल्ली की पहली मेयर?
Features
lekhaka-Rajkumar Pal
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दिल्ली
नगर
निगम
चुनाव
के
84
दिन
के
लंबे
इंतजार
के
बाद
आखिरकार
आम
आदमी
पार्टी
ने
मेयर
और
डिप्टी
मेयर
के
पद
पर
कब्जा
जमा
लिया
है।
आम
आदमी
पार्टी
की
शैली
ओबेरॉय
34
वोटों
से
मेयर
पद
का
चुनाव
जीती
हैं।
हालांकि,
वह
महज
38
दिन
ही
महापौर
के
पद
पर
रह
कर
काम
कर
सकेंगी।
शैली
दिल्ली
एमसीडी
में
31
मार्च
तक
मेयर
रहेंगी
और
उसके
बाद
एक
अप्रैल
को
फिर
से
मेयर
का
चुनाव
होगा।
एमसीडी
के
नियम
अनुसार
प्रत्येक
वित्त
वर्ष
के
लिए
नए
मेयर
का
चुनाव
होता
है।
दिल्ली
का
नगरीय
इतिहास
दिल्ली
नगरीय
प्रशासन
का
इतिहास
1862
के
बाद
से
ही
अस्तित्व
में
है।
जब
नगरीय
प्रशासन
के
ढांचे
की
शुरुआत
हुई,
तब
दिल्ली
की
जनसंख्या
महज
1.21
लाख
थी
और
शहर
520
हेक्टेयर
तक
फैला
हुआ
था।
1863
में
दिल्ली
के
सदर
बाजार
से
पहली
बार
जन्म
और
मृत्यु
का
पंजीकरण
शुरू
हुआ।
तब
निगम
में
21
मनोनीत
सदस्य
(5
सरकारी
अधिकारी,
3
यूरोपीय,
5
हिंदू,
5
मुस्लिम
और
बाकि
गैर
सरकारी)
रखे
गये
थे।
इसके
बाद
धीरे-धीरे
दूसरे
कार्य
जैसे
सफाई,
सड़क
निर्माण,
पुलिस
व्यवस्था
व
जल
आपूर्ति
हेतु
धन
की
आवश्यकताओं
को
पूरा
करने
के
लिए
साल
1902
में
पहली
बार
हाउस
टैक्स
लेने
का
प्रावधान
रखा
गया।
तब
46
हजार
संपत्तियों
से
कुल
85
हजार
के
आस-पास
टैक्स
लिया
गया
था।
वहीं
अन्य
आय
स्रोतों
में
चुंगी
आदि
टैक्स
थे।
इसके
बाद
12
दिसंबर
1911
में
कलकत्ता
की
जगह
दिल्ली
को
भारत
की
राजधानी
बनाने
की
घोषणा
की
गई।
अब
जाहिर
सी
बात
है
कि
निगम
पर
बोझ
बढ़ने
वाला
था।
इसके
तहत
यहां
वायसराय,
अधिकारियों
के
लिए
बंगले,
संसद
भवन,
नॉर्थ
ब्लॉक,
साउथ
ब्लॉक,
उद्यान
आदि
का
निर्माण
किया
गया।
तब
अंग्रेज
अधिकारियों
ने
सोचा
कि
निगम
की
बजाए
दिल्ली
को
केन्द्र
सरकार
(अंग्रेजी
हुकूमत)
के
अधीन
ही
रखा
जाये।
जिसके
परिणामस्वरुप
25
मार्च
1913
को
रायसीना
नगर
समिति
(नई
दिल्ली
नगर
निगम)
का
गठन
हुआ।
आजादी
के
बाद
बना
नगर
निगम
अधिनियम
आजादी
के
बाद
विभाजन
जैसी
आपदा
ने
दिल्ली
की
आबादी
को
अचानक
कई
गुना
बढ़ा
दिया।
जिसके
तहत
अनेक
नई
कॉलोनी
बनीं,
और
कई
स्थानीय
प्रशासन
इकाईयों
का
गठन
हुआ।
जिसमें
प्रमुख
रुप
से
वेस्ट
दिल्ली
म्युनिसिपल
कमेटी
और
साउथ
म्युनिसिपल
कमेटी
थी।
इन
कमेटियों
का
पहला
चुनाव
1951
में
हुआ,
जिनमें
50
सदस्य
निर्वाचित
हुए।
इसके
बाद
भी
समस्याएं
बनी
हुई
थी।
तब
तत्कालीन
नेहरू
सरकार
ने
दिल्ली
का
एकीकृत
नगर
निगम
अधिनियम
संसद
में
पारित
किया।
इस
प्रकार
दिल्ली
नगर
निगम
अधिनियम
1957
अस्तित्व
में
आया।
पहला
चुनाव
–
किसे
कितनी
सीटें
मिली
इसके
बाद
1958
में
दिल्ली
नगर
निगम
के
लिए
80
सीटों
पर
मतदान
हुआ।
इस
चुनाव
में
कांग्रेस
महज
31
सीट
ही
जीत
सकी,
जबकि
कुछ
साल
पहले
बनी
भारतीय
जनसंघ
ने
25
सीटों
पर
जीत
दर्ज
की
थी।
गौरतलब
है
कि
जनसंघ
ने
सिर्फ
54
सीटों
पर
चुनाव
लड़ा
था,
जबकि
कांग्रेस
ने
सभी
80
सीटों
पर
चुनाव
लड़ा
था।
इस
चुनाव
में
14
निर्दलीय
और
8
सीटें
कम्युनिस्ट
पार्टी
को
मिली।
जबकि
प्रजा-सोशलिस्ट
पार्टी
और
हिंदू
महासभा
को
1-1
सीटें
मिलीं।
गौरतलब
है
कि
इस
चुनाव
में
तकरीबन
12,76,250
वोट
पड़े
थे,
जिसमें
चुनाव
ऑथोरिटी
के
द्वारा
6,850
वोटों
को
अमान्य
घोषित
किया
गया
था।
वहीं
नगर
निगर
के
इस
चुनाव
में
54
प्रतिशत
वोट
पड़े
थे।
जिसमें
शहरी
क्षेत्रों
की
तुलना
में
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
अधिक
मतदान
हुआ
था।
उदाहरण
के
लिए,
नरेला
में
ही
लगभग
68
प्रतिशत
मतदाता
मतदान
करने
पहुंचे
थे।
ऐसे
चुनी
गई
अरुणा
आसफ
अली
मेयर
अब
नगर
निगम
को
चलाने
के
लिए
मेयर
को
चुना
जाना
था।
तब
6
लोगों
को
एल्डरमैन
के
तौर
पर
चुना
जाता
था,
जबकि
आज
10
लोगों
को
उपराज्यपाल
के
द्वारा
एल्डरमैन
के
तौर
पर
चुना
जाता
है।
इसी
एल्डरमैन
के
तौर
पर
उन
छह
लोगों
में
अरूणा
आसफ
अली
को
भी
चुना
गया
था।
उस
दौरान
उन्हें
मेयर
पद
के
सबसे
ज्यादा
56
वोट
मिले
थे।
इस
तरह
अरूणा
आसफ
अली
दिल्ली
नगर
निगम
की
पहली
मेयर
चुनी
गईं
थी।
दरअसल
कांग्रेस
और
जनसंघ
ने
एल्डरमैन
की
दो-दो
सीटें
साझा
कीं
थी।
एक
सीट
खुद
अरुणा
आसफ
अली
और
छठी
एक
निर्दलीय
के
पास
गई
थी।
पांच
एल्डरमैन
जो
थे,
उसमें
बावा
बचिततार
सिंह
और
राजा
राम
(कांग्रेस),
कौशल्या
देवी
और
डॉ.
केदारनाथ
साहनी
(जनसंघ)
और
बल
सिसेन
(निर्दलीय)
थे।
वहीं
श्रीमती
अरुणा
आसफ
अली
का
नाम
कांग्रेस,
कम्युनिस्टों,
प्रजा
सोशलिस्ट
पार्टी
और
निर्दलीयों
द्वारा
संयुक्त
रूप
से
प्रायोजित
किया
गया
था।
इस
तरह
86
सदस्यों
के
निगम
(एल्डरमैन
समेत)
में
कांग्रेस
(33),
जनसंघ
(27),
निर्दलीय
(15),
कम्युनिस्ट
(8),
हिंदू
महासभा
(1),
प्रजा
सोशलिस्ट
पार्टी
(1)
और
अरुणा
अली
(किसी
पार्टी
संबद्धता
नहीं)
शामिल
थे।
जनसंघ
के
उम्मीदवार
को
हराकर
बनी
थी
मेयर
14
अप्रैल
1958
को
अरुणा
को
कुल
86
मेंबर
(6
एल्डरमैन)
में
से
56
वोट
मिले
थे,
जबकि
जनसंघ
के
उम्मीदवार
हरि
चंद
को
28
वोट
मिले
थे।
अरुणा
वैसे
तो
किसी
पार्टी
से
नहीं
थीं
लेकिन
कम्युनिस्ट,
कांग्रेस
और
निर्दलीय
का
पूरा
सपोर्ट
था।
वहीं
आसफ
ने
खुद
अपना
वोट
नहीं
डाला
था,
जबकि
एक
वोट
निरस्त
किया
गया
था।
वहीं
डिप्टी
मेयर
के
तीन
उम्मीदवार
मैदान
में
थे।
जिसमें
आर.सी.
अग्रवाल,
एक
निर्दलीय
उम्मीदवारने
रूप
में
थे।
उन्होंने
जनसंघ
के
सहदेव
मल्होत्रा
को
हराकर
यह
पद
जीता।
दरअसल
इस
पद
के
लिए
दो
चरणों
में
वोटिंग
थी।
आर.सी.
अग्रवाल
(निर्दलीय),
कंवरलाल
गुप्ता
(निर्दलीय)
और
सहदेव
मल्होत्रा
(जनसंघ)
मैदान
में
थे।
पहले
राउंड
में
23
वोट
पाकर
कंवरलाल
गुप्ता
बाहर
हो
गये।
वहीं
दूसरे
राउंड
में
आर.सी.
अग्रवाल
को
57
वोट
मिले,
जबकि
जनसंघ
के
उम्मीदवार
को
27
वोट
मिले।
कौन
थीं
अरुणा
आसफ
अली?
16
जुलाई
1909
को
कालका
(हरियाणा)
के
हिन्दू
बंगाली
परिवार
में
जन्मी
अरुणा
गांगुली
बचपन
से
आजादी
के
आंदोलनों
में
हिस्सा
लेती
रहती
थीं।
अपनी
ग्रेजुएशन
की
पढ़ाई
पूरी
करने
के
बाद
उनकी
मुलाकात
इलाहाबाद
में
आसफ
अली
से
हुई।
आसफ
अली
वकालत
करते
थे,
जो
अरुणा
से
उम्र
में
23
साल
बड़े
थे।
साल
1928
में
अरुणा
ने
अपने
मां-बाप
की
मर्जी
के
बिना
उनसे
शादी
कर
ली।
तब
से
वो
गांगुली
की
जगह
आसफ
अली
लिखने
लगीं।
आसफ
अली
ही
वो
शख्स
थे
जिन्होंने
भगत
सिंह
का
बाद
में
केस
लड़ा
था।
Fake
Currency:
फिर
से
बढ़
रहे
हैं
जाली
नोट,
क्या
नोटबंदी
का
कोई
असर
हुआ?
आजादी
का
जुनून
अरुणा
पर
इस
कदर
था
कि
वो
कितनी
ही
बार
जेल
जा
चुकी
थीं।
साल
1942
में
भारत
छोड़ो
आंदोलन
के
समय
अरुणा
ने
मुंबई
के
गोवालिया
टैंक
मैदान
में
झंडा
फहरा
दिया
था।
तब
उनकी
पूरी
संपत्ति
को
जब्त
कर
लिया
गया।
अंग्रेजों
ने
उन्हें
पकड़ने
के
लिए
5000
रुपये
के
इनाम
की
घोषणा
कर
दी
थी।
अरुणा,
महात्मा
गांधी
के
भी
काफी
करीबी
थी।
वहीं
कांग्रेस
की
सक्रिय
नेता
भी
थीं।
आजादी
के
बाद
साल
1948
में
अरुणा
आसफ
अली
और
समाजवादियों
ने
मिलकर
एक
सोशलिस्ट
पार्टी
बनाई।
दो
साल
बाद
1950
में
अरुणा
भारतीय
कम्युनिस्ट
पार्टी
की
सदस्य
बनीं।
कम्युनिस्ट
पार्टी
से
मोह
भंग
होने
के
बाद
1956
में
अरुणा
ने
पार्टी
छोड़
दी।
फिर
1958
में
दिल्ली
की
मेयर
चुनी
गईं।
साल
1975
में
उन्हें
लेनिन
शांति
पुरस्कार,
1991
में
जवाहर
लाल
नेहरू
पुरस्कार
दिया
गया।
29
जुलाई,
1996
में
87
साल
की
उम्र
में
अरुणा
का
देहांत
हो
गया।
1998
में
मरणोपरांत
उन्हें
भारत
का
सर्वोच्च
नागरिक
सम्मान
‘भारत
रत्न’
प्रदान
किया
गया।
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English summary
Delhi Mayor: How Aruna Asaf Ali became the first mayor of Delhi