Daan Ka Mahatva: क्या दान करने से मिलती है मोह से मुक्ति? आईये जानते हैं आचार्य कौटिल्य से – Times Bull

Chanakya Nti


Chanakya Niti: हिंदू शास्त्र और धर्म ग्रंथों में यह बताया गया है कि धन की तीन गतियां होती है दान भोग और नाश ऐसे में चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य के सिद्धांत भी कुछ ऐसे ही मिलते हैं उनका कहना है कि जो व्यक्ति धन का उपयोग सत कर्मों में नहीं करता है उसका उपयोग अपने संसाधनों को बेहतर बनाने और लोगों की सेवा में नहीं करता है वह दान नहीं करता है उसको तीसरी गति यानी धन के नाश से गुजारना पड़ता है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र में भी कुछ ऐसे ही बातों का जिक्र किया है जिसके बारे में आपको जानना चाहिए-

हाथों का श्रृंगार है दान
दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन स्नानेन शुद्धिर्न तु चन्दनेन ।
मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन ।।

इस श्लोक को पढ़कर यह पता चलता है कि दान की कितनी महत्व है चाणक्य का कहना है कि दान करने वाले हाथ किसी कंगन पहनने वाले हाथ से भी ज्यादा खूबसूरत होते हैं। जिस प्रकार स्नान के बाद शरीर में पवित्रता आती है चंदन या सुगंधी का लेप करने से शरीर पवित्र नहीं होता है वैसे ही दान करने से ही धन की बढ़ोतरी होती है जैसे केवल भोजन करने से पेट नहीं भरता है मान सम्मान की आवश्यकता होती है, श्रृंगार से केवल मोक्ष नहीं मिलता है इसके लिए ज्ञान प्राप्त होना महत्वपूर्ण है ऐसे में आचार्य चाणक्य की माने तो किसी भी व्यक्ति को जिसके पास धान धन है उसे दान करने से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए। चाणक्य कहते हैं कि पवित्र रहने के लिए स्नान, मन की शुद्धता के लिए अच्छे विचार, व्यवहार से पाया गया मान सम्मान ज्ञान प्राप्त करना और साथ ही दान देकर मन और जीवन को पवित्र बनाना ही धन का महत्व है।

दान से बढ़कर कोई काम नहीं
नान्नोदकसमं दानं न तिथिर्द्वादशी समा ।
न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातुर्दैवतं परम् ।।

चाणक्य के इस श्लोक से यह पता चलता है कि किसी प्यासे को पानी और भूखे को अन्न देना या भोजन करवाना के समान दूसरा कोई पूण्य काम नहीं है। जिस प्रकार द्वादशी के बराबर कोई दूसरी तिथी नहीं है, मंत्रों में गायत्री के समान कोई दूसरा मंत्र नहीं है और देवता के रूप में मां से बढ़कर कोई भगवान नहीं है, ऐसे में किसी भी सामान्य मानव को सुख, पुण्य और मोक्ष के लिए सामर्थ के मुताबिक दान करना चाहिए, उसे गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए, ऐसा करने से मन को शांति और शरीर को शुद्धता मिलती है साथ ही हर किसी को भगवान के साथ ही माता-पिता का भी आदर और सम्मान करना चाहिए ताकि उनका आशीर्वाद जीवन में बने रहे।



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