Budget 2023-24: आम चुनाव 15 महीने दूर… क्‍या बजट में रेवड़‍ियों का इंतजार कर रहे लोगों की उम्‍मीदों पर फिरेगा पानी?

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नई दिल्‍ली: बजट 2023-24 की उलटी गिनती शुरू हो गई है। वि‍त्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को केंद्रीय बजट पेश करेंगी। इसके पहले तमाम तरह की अटकलें तेज हैं। कई लोगों को उम्‍मीद है कि यह बजट काफी लोकलुभावन हो सकता है। कारण है कि अगले साल लोकसभा चुनाव हैं। लोगों को खुश करने के लिए रेवड़‍ियां बांटी जा सकती हैं। यह और बात है कि कुछ जानकारों का कहना है कि इस तरह की आस लगाए बैठे लोगों को निराशा हो सकती है। चुनाव अगले साल होने हैं। सरकार ऐसा कुछ करेगी जो लोगों को लंबे समय तक याद रहे। ऐसे में उम्‍मीद यह है कि वह सुधारों की दिशा में ही आगे बढ़ेगी। वैसे भी मौजूदा सरकार रेवड़‍ियां बांटने से कतराती रही है। वह इसका खुलकर विरोध करती आई है।

सुंदरम म्‍यूचुअल फंड के एमडी और सीईओ सुनील सुब्रमण्‍यम भी उन लोगों में शामिल हैं जो मानते हैं कि सरकार सुधारों की दिशा में आगे बढ़ना जारी रखेगी। वह उन्‍हीं क्षेत्रों को बढ़ावा देगी जिन्‍हें जरूरत है। वह मानते हैं कि बेशक यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम पूर्ण बजट है। लेकिन, ऐसे कई पहलू हैं जो सरकार देखेगी। अंतिम पूर्ण बजट होने के कारण मीडिया में भी कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि, सच है कि जनता की याददाश्‍त छोटी होती है। सरकार अभी जो कुछ भी देगी, उसे 15 महीने या 18 महीने बाद कोई याद नहीं रखेगा।

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क‍िन बातों पर हो सकता है सरकार का फोकस
सुनील सुब्रमण्‍यम के मुताबिक, इसी को देखते हुए सरकार सिर्फ वही करेगी जिसका असर लंबे समय तक रहे। यानी जो चुनावों में भी याद रहे। लोगों को चुनावों में मुख्‍य रूप से महंगाई याद रहती है। ऐसे में सरकार निश्चित तौर पर चाहेगी कि वह इसे कंट्रोल में रखे। यह उसकी सबसे पहली प्राथमिकता होगी।

दूसरी सबसे अहम चीज अगले 15 महीनों में रोजगार के मौके तैयार करना है। सरकार को इस मोर्चे पर पूरी ताकत झोंकनी होगी। ऐसे में रियल एस्‍टेट और हाउसिंग से जुड़े इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर पर फोकस बना रहेगा। ये सबसे बड़े इम्‍प्‍लॉयमेंट जेनरेटर होते हैं। उन्‍हें लगता है कि एमएसएमई को भी सरकार सहारा देगी। इनमें भी बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलता है।

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कहां पैसा लगाएगी सरकार?
हमारे सहयोगी ‘इकनॉमिक टाइम्‍स’ के साथ बातचीत में सुनील सुब्रमण्‍यम ने आगे कहा कि सरकार अपने खर्च को खाास तरह से चैनलाइज करने की कोशिश करेगी। वह इस तरह से चीजें करेगी ताकि वोटिंग पॉपुलेशन यानी ‘वोट देने वाली जनता’ पर लंबे समय के लिए असर दिखाई दे। सुब्रमण्‍यम ने बताया कि उन्‍होंने वोटिंग पॉपुलेशन शब्‍द का इस्‍तेमाल इसलिए किया क्‍योंकि इसमें मिड‍िल क्‍लास नहीं आता है। मिडिल क्‍लास बहुत ज्‍यादा चर्चा करता है। उसकी मांगें भी ज्‍यादा होती हैं। लेकिन, कोविड के बाद देखें तो मिडिल क्‍लास की इनकम में वास्‍तव में बढ़ोतरी हुई है। असल में मार्जिनल क्‍लास पर कोविड का सबसे ज्‍यादा असर पड़ा है। ऐसे में सरकार की कोशिश होगी कि वह सबसे जरूरतमंद तबके तक मदद के हाथ बढ़ाए।

इस तरह जो कोई भी स्‍कीम आएगी, उससे सबसे ज्‍यादा जरूरतमंद को ही मदद देने की कोशिश होगी। सुब्रमण्‍यम के अनुसार, फोकस में यही चीजें होंगी। सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करने वाली जिसे लोग याद न रख पाएं। ऐसे में लोकलुभावन बजट की उम्‍मीद कम है।

दरअसल, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम बजट होने के कारण ज्‍यादातर को उम्‍मीद है कि इसमें सरकार दोनों हाथों से लोगों को सौगातें देगी। अगला लोकसभा चुनाव अगले साल होना है। इसके पहले इस साल साल कई राज्‍यों में विधानसभा चुनाव हैं। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम शामिल हैं। यही कारण है कि लोग इस साल बजट से बहुत ज्‍यादा आस लगाए हुए हैं।



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