कंपनी ने साफ किया कि उसे रेलवे की ओर से वंदे भारत ट्रेन की सीटों और अंदरूनी पैनल्स का ऑर्डर मिला है। यह ट्रेन के कोच या डिब्बों को बनाने का ऑर्डर नहीं है। टाटा स्टील के प्रौद्योगिकी और नई सामग्री कारोबार विभाग के उपाध्यक्ष देवाशीष भट्टाचार्य ने कहा, ‘टाटा स्टील 225 करोड़ रुपये के ऑर्डर के तहत वंदे भारत रेल के 23 डिब्बों के लिए हल्की सीटें और 16 डिब्बों के लिए फाइबर से लैस पॉलिमर कम्पोजिट-आधारित अंदरूनी पैनल की आपूर्ति करेगी।’ कुछ मीडिया संस्थानों ने खबर चलाई थी कि टाटा स्टील को वंदे भारत रेल के डिब्बे बनाने का ऑर्डर मिला है, जो कि गलत और निराधार है। हमें डिब्बों के विनिर्माण का ऑर्डर नहीं मिला है।
ट्रेन बनाने की रफ्तार बहुत कम
उन्होंने कहा कि टाटा स्टील को ठेके की पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद यह ऑर्डर मिला है। यह ऑर्डर 225 करोड़ रुपये का था। देश में अभी 10 वंदे भारत ट्रेन चल रही हैं। 11वें ट्रेन दिल्ली से अजमेर और 12वीं ट्रेन चेन्नई से कोयंबटूर के बीच चल सकती है। देश के कई राज्यों में अब तक एक भी वंदे भारत एक्सप्रेसनहीं चलाई जा सकी है। इसकी वजह यह है कि देश में इन ट्रेनों को बनाने की रफ्तार बहुत कम है। संसद की एक समिति ने वंदे भारत ट्रेनों के उत्पादन की रफ्तार पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए हाल में कहा था कि वर्ष 2023 के लिए 35 रेक तैयार करने के लक्ष्य की तुलना में केवल आठ रेक का निर्माण किया जा सका है। इसलिए जब यह काम टाटा स्टील को सौंपने की खबर आई तो लोगों को जल्दी वंदे भारत ट्रेन मिलने की उम्मीद जगी। बिहार-झारखंड समेत कई राज्यों को अब तक वंदे भारत ट्रेन नहीं मिल पाई है। लेकिन कंंपनी ने इस खबर का खंडन किया है।
अभी केवल चेन्नई के इंटिग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में वंदे भारत के कोच बनाए जा रहे हैं। सरकार ने देश की आजादी की अमृत महोत्सव के मौके पर 75 वंदे भारत ट्रेन चलाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन जिस रफ्तार से ट्रेन बन रही हैं, उससे इस लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल लग रहा है। सरकार का लक्ष्य आगे स्लीपर वंदे भारत ट्रेन चलाने का भी है। इन्हें राजधानी एक्सप्रेस (Rajdhani Express) के रूट पर चलाया जाएगा। अभी ये शताब्दी एक्सप्रेस (Shatabdi Express) के रूट पर चल रही हैं।