एविएशन सेक्टर में आएगा बड़ा बदलाव

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सौरभ सिन्हा

SAURABH SINHA

इंडियन एविएशन सेक्टर नई ऊंचाइयां छूने की तैयारी में है। इसका आगाज किया है एयर इंडिया ने, एयरबस और बोइंग को 840 विमानों का ऑर्डर देकर। टाटा संस का अमेरिका और फ्रांस की इन कंपनियों के साथ हुआ 85 अरब डॉलर का यह सौदा, एविएशन इंडस्ट्री में अब तक की सबसे बड़ी डील है। आइए, समझते हैं इस डील से क्या बदलाव आएगा भारतीय एविएशन सेक्टर में?

  • यह जो डील हुई है, उससे पांच-सात साल में दुनिया के जितने भी मेजर डेस्टिनेशन हैं, वहां के लिए एयर इंडिया सीधी विमान सेवा शुरू कर पाएगी क्योंकि कंपनी हर रेंज के हवाई जहाज खरीदने जा रही है।
  • एयर इंडिया डीप कमर्शल पार्टनरशिप भी करेगी तमाम पार्टनर्स के साथ, जैसे- सिंगापुर एयरलाइंस और लुफ्थांसा। फिर कंपनी के साथ स्टार एयरलाइंस वाले भी मजबूत करेंगे साझेदारी।
  • इसका असर यह होगा कि आने वाले समय में भारतीय यात्रियों को सुबह 4 बजे की फ्लाइट खाड़ी देशों में जाने के लिए नहीं पकड़नी पड़ेगी और ना ही वहां से ढाई-तीन घंटे की दूसरी फ्लाइट लेनी होगी।
  • एयर इंडिया के साथ इंडिगो भी इस बाजार की दिग्गज खिलाड़ी है। आज की तारीख में इंडिगो करीब 310 प्लेन ऑपरेट कर रही है। उसने 500 हवाई जहाज के और ऑर्डर दे रखे हैं। इन्हें देखकर लगता है कि आने वाले वर्षों में भारत में एविएशन इंडस्ट्री का रंग-रूप पूरी तरह से बदलने वाला है।

Air India

भारत की ताकत
इंडिया में हमारे पास प्लस पॉइंट है ट्रैफिक। हम लोग ट्रैफिक जेनरेट कर सकते हैं। उसकी वजह से आसपास के हब्स पर जब उतरते हैं तो ऐसा लगता है कि हम किसी भारतीय रेलवे स्टेशन पर हैं। भारत का ट्रैफिक फीड होता है वहां, जिससे बड़े हवाई जहाज भरते हैं, जो दुनिया के कोने-कोने में जाते हैं। अब यही भारत में होगा। हालांकि ध्यान रखना चाहिए, इंडियन एयरलाइंस का मतलब यहां उन एयरलाइंस से है, जो वित्तीय रूप से मजबूत हैं। पहले देखा गया कि कुछ एयरलाइंस शुरू हुईं और दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद बंद हो गईं। जेट एयरवेज 26 साल चली, उसके बाद बंद हो गई। अब इसे दूसरे मालिक शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। किंगफिशर भी कुछ वर्षों के बाद बंद हो गई। यानी नई कंपनियों का इस बाजार में आना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही उसका वित्तीय रूप से मजबूत होना। टाटा ग्रुप के एयर इंडिया को खरीदने से उसे वैसी वित्तीय स्थिरता मिली है, जो अब तक सिर्फ इंडिगो के पास थी। भारतीय विमानन उद्योग ने जो तेजी दिखाई है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इसका भविष्य शानदार है, इसलिए एयरपोर्ट्स में भी इन्वेस्टमेंट हो रहा है। एयरपोर्ट सेक्टर में अगले चार-पांच साल में करीब एक लाख करोड़ का निवेश होना है।

कॉम्पिटिशन बढ़ेगा

भारतीय एयरलाइंस के लिए कुछ दिक्कतें भी हैं, जिन्हें दूर करने पर इंडस्ट्री की ग्रोथ और तेज हो सकती है।

  • भारत में एविएशन टर्बाइन फ्यूल दुनिया में सबसे महंगा है। एक तो इसका बेस प्राइस भी ज्यादा है, दूसरे इस पर टैक्स भी काफी ज्यादा लगता है। इस वजह से भारतीय एयरलाइंस को बहुत महंगी कीमत पर तेल खरीदना पड़ता है।
  • अमेरिका की तीन बड़ी एयरलाइंस हैं- यूनाइटेड कॉन्टिनेंटल, यूनाइटेड डेल्टा और अमेरिकन। उन्हें भी भारत से बड़ा ट्रैफिक मिलता है। लेकिन आने वाले वर्षों में भारतीय यात्रियों के पास एयर इंडिया और दूसरी एयरलाइंस का विकल्प मिलेगा।
  • अभी भारतीय यात्रियों को हवाई जहाज में टूटी हुई सीटें मिलती हैं। उन्हें फ्लाइट में बढ़िया एंटरटेनमेंट सर्विसेज नहीं मिलतीं। लेकिन जब कॉम्पिटिशन बढ़ेगा तो कंपनियां कम किराये से ग्राहकों को लुभाने की कोशिश करेंगी।
  • यह इंडस्ट्री साइक्लिकल है। इस इंडस्ट्री में ऑर्डर दिए जाते हैं। लेकिन जब प्लेन की डिलिवरी लेने का समय आता है तो अमूमन देखा जाता है कि उस समय किसी तरह की आर्थिक मंदी आ जाती है। इसलिए कंपनियों का निवेश करना जोखिम भरा भी होता है।
  • कोरोना के दस्तक देने से पहले भी भारतीय एयरलाइन कंपनियों ने निवेश की बड़ी योजनाएं बना रखी थीं, लेकिन महामारी की वजह से उन्हें टालना पड़ा। कोविड-19 वायरस की छाया खत्म होने के बाद टूर-ट्रैवेल सेग्मेंट में शानदार रिकवरी आई है, जिसका फायदा एविएशन सेक्टर को भी मिला है।

बढ़ेंगी जॉब्स
इस रिकवरी को ध्यान में रखते हुए एयरपोर्ट्स की क्षमता भी बढ़ानी होगी। इस समय भारतीय कंपनियों ने करीब 1500 प्लेन के ऑर्डर दिए हुए हैं। उनके लिए पायलट, केबिन क्रू, एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर और ग्राउंड स्टाफ की जरूरत पड़ेगी। केबिन क्रू के मामले में तो स्थिति आज भी खराब है। एयर इंडिया को केबिन क्रू शॉर्टेज का सामना करना पड़ता है। इसका मतलब यह है कि आने वाले वक्त में इस क्षेत्र में रोजगार में बढ़ोतरी होगी और इसका फायदा इससे जुड़े उद्योगों को भी होगा। मान लीजिए एक एयरलाइन की कोई फ्लाइट किसी शहर में पहुंची। वहां से यात्री निकलकर टैक्सी लेते हैं और अपने घर जाते हैं। उनमें से कई बिजनेस ट्रैवेलर्स भी होते हैं, जो होटल में रुकते हैं। ये लोग रेस्टोरेंट्स में खाना खाते हैं। यानी कई लेवल पर रोजगार के मौके बनते हैं।

मेक इन इंडिया
इसके अलावा प्रधानमंत्री का मेक इन इंडिया पर जो फोकस है, उसकी वजह से आज एयरबस जैसी कंपनियां कह रही हैं कि हम इंडिया से सप्लाई बढ़ाएंगे। यहां ज्यादा इन्वेस्टमेंट भी करेंगे। अब एयर इंडिया सरकारी कंपनी तो है नहीं कि उस पर ऑफसेट का कोई रूल लगेगा कि इतने हजार करोड़ का ऑर्डर दे रहे हैं तो विदेशी कंपनियों को उसमें से एक हिस्सा देशी कंपनियों को देना होगा। लेकिन मेक इन इंडिया की वजह से विदेशी कंपनियों पर दबाव है कि वे कल-पुर्जे और स्पेयर पार्ट्स भारत से ही खरीदें। हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि डिफेंस एयरक्राफ्ट्स का जो इकोसिस्टम है, वही आगे आगे चलकर कमर्शल एयरक्राफ्ट के प्रॉडक्शन, फाइनल एसेंबलिंग और फॉर्मल रिसोर्सिंग की तरफ भी ले जाएगा।

(लेखक टाइम्स ऑफ इंडिया के सीनियर एडिटर हैं)

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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