यादों की घड़ी: कभी इसके बगैर अधूरी लगती थीं शादियां, कैसे बर्बाद हुई HMT घड़ी

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नई दिल्ली: कहते हैं कि ये वक्त-वक्त की बात ह, एक वक्त था, जब ये हर हाथ की शान हुआ करती थी। इसके बिना शादियां अधूरी रहती थी। इसे खरीदा नहीं बल्कि कमाया जाता था, आज वो बीते वक्त की बात बन चुका है। जो कभी कलाईयों की शान होता था, आज एल्बम की यादों में रह गया है। एक वक्त वो भी था, जब घड़ी का मतलब HMT हुआ करती थी, लेकिन वक्त ऐसा बदला कि आज वो बर्बाद हो चुका है। आज उसी एचएमटी घड़ी की शुरुआत से लेकर उसकी बर्बादी की कहानी जानते हैं।

कैसे हुई शुरुआत? ​

कैसे हुई शुरुआत?  ​

साल 1961 में जापान की सिटिज़न वॉच कंपनी के साथ मिलकर एचएमटी घड़ियों की मैन्चुफैक्चरिंग शुरू हुई। देश भर में इसकी 29 यूनिट्स स्थापित की गई। एचएमटी का सेल और सर्विस नेटवर्क छोटे-छोटे शहरों तक पहुंच गया। एचएमटी ने अपनी पहली घड़ी जनता ब्रांड नाम से लॉन्च की। पहली घड़ी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के लिए बनी। इसके बाद क्या था, कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 70-80 के दशक में एचएमटी का कारोबूार बुलंदियों पर पहुंच गया। वो ऐसा वक्त था, जब शादियों में एचएमची की घड़ियां शान समझी जाती थी। बच्चे जब फर्स्ट डिवीजन के साथ पास करते थे तो पिता उन्हें गर्व के साथ एचएमची की घड़ी गिफ्ट करते थे।

​लोगों पर कायम रहा जादू​

​लोगों पर कायम रहा जादू​

एचएमटी की पहली वॉच फैक्ट्री बेंगलुरु में 112 एकड़ में बनाई गई। कंपनी सालाना 60 लाख गाड़ियां तक बनाई थी। कंपनी के 3500 मॉडल बाजार में थे। एचएमटी ने अपने कामकाज के दौर में 11 करोड़ से अधिक घड़ियां बनाई। 1991 तक बाजार में एचएमटी का परचम लहराता रहा। कंपनी के विज्ञापन भी लोग बैठकर टीवी पर देखते थे। उसका टैगलाइन ‘देश की धड़कन’ ने तीन दशकों तक एचएमटी की घड़ियों को लोगों की पहली पसंद बनाया। कंपनी के पास 300 रुपये से लेकर 8000 रुपये तक की घड़ियां थी। पॉकेट वॉच, कलाई घड़ी जैसे तमाम ऑप्शन उपलब्ध थे। कंपनी ने सोना और विजय ब्रांड के साथ क्वार्ट्ज घड़ियां भी लॉन्च कर दी।

​बढ़ता रहा कारोबार

​बढ़ता रहा कारोबार

कंपनी की बेंगलुरु स्थित 112 एकड़ की फैक्ट्री थी। बाद में उत्तराखंड के रानीबाग में फैक्ट्री लगी। कंपनी के पास 3500 से अधिक मॉडल थे। एचएमटी के इतने ब्रांड थे कि लोगों को शोरूम में अपनी पसंद का ब्रांड निकलवाने में घंटों लग जाते थे। कंपनी के पास इतना ऑर्डर था कि आर्मी कैंटीन को सप्लाई देने में एक महीने का वक्त लग जाता था।

​ऐसे शुरू हुआ बुरा वक्त

​ऐसे शुरू हुआ बुरा वक्त

उदारीकरण के बाद HMT के बुरे दिनों की शुरुआत होने लगी। 1993 में जब दुनिया के लिए भारतीय बाजारों को खोल दिया गया, तभी से इसके बुरे वक्त शुरू हो गए। बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी। उधर Tata ने अपने ब्रांड Titan को उतार दिया। नई कंपनियों के आने के बाद बाजार बंटने लगे। बड़े-बड़े ब्रांड्स पहुंचने लगे। उनके सामने एचएमटी को ओल्ड मॉडल कहा जाने लगा। एचएमटी घड़ियों की बिक्री गिरने लगी। कंपनी की माली हालत खराब होने लगी थी। एचएमटी समय के मुताबिक खुद को अपग्रेड नहीं कर पाई। लोग यहां नई तकनीक और नए डिजाइन की ओर भागने लगे, HMT को लोगों की बेरुखी का सामना करना पड़ा। कंपनी का कर्ज भी बढ़ता चला गया और घाटा भी। लगातार बढ़ रहे कर्ज और घाटे को देखते हुए कंपनी को बंद करने का फैसला लिया गया। जो घड़ियां कभी कलाईयों की शान हुआ करती थी, वो बर्बाद हो गई।



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