दिन में सोते हैं तो हो जाएं सावधान! बढ़ जाता है आंखों की रोशनी जाने का खतरा!

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Sleeping In Daytime: अक्‍सर हमें रात में 6 से 8 घंटे की नींद लेने की सलाह दी जाती है. हालांकि, यह परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है कि नींद कब लेनी है. फिर भी रात के समय ली गई अच्‍छी नींद, आपको अगले दिन तरोताजा रखती है. अगर आप रात में भरपूर नींद नहीं लेते तो आपको दिन में नींद आती है. क्या आपको पता है कि दिन में सोने से आपकी आंखों पर बुरा असर पड़ता है? इसका खुलासा एक शोध में हुआ है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह स्थिति ज्‍यादा गंभीर हो तो समस्‍या अंधेपन तक भी बढ़ सकती है.

दिन में नींद लेना बना सकता है अंधा

ब्‍लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, रात में नींद न लेने और दिन में खर्राटे भरने की समस्या लंबे समय तक चलने से ग्लूकोमा, यानी काला मोतियाबिंद होने का खतरा बढ़ जाता है. इस बीमारी का सही समय पर इलाज न हो तो यह स्तिथि इतनी गंभीर हो सकती है कि इससे दृष्टिहीनता यानी अंधे होने का भी खतरा रहता है. बीएमजे ओपन जर्नल में छपी एक रिसर्च के अनुसार, ग्लूकोमा के कारण अगर आंखों की रोशनी चली जाती है, तो दोबारा नहीं लौटती है. शोधकर्ताओं ने बताया है कि रात में पूरी नींद नहीं लेने की स्थिति में किसी भी उम्र के लोगों को ग्लूकोमा हो सकता है. यह समस्या बुजुर्गों और धूम्रपान करने वालों में तो आम है.

11 साल की रिसर्च ने किया खुलासा

ब्रिटेन के बायोबैंक की ओर से हुई इस स्‍टडी में 40 से 69 साल के बीच की उम्र वाले 4 लाख से अधिक लोगों के डेटा का आकलन और विश्‍लेषण किया गया. इस स्‍टडी में शामिल किए गए लोगों से उनकी नींद की आदतों के बारे में पूछा गया. 2010 से 2021 तक चली इस स्‍टडी में लगभग 8,690 लोगों में ग्लूकोमा पाया गया है. आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं ने पाया कि भरपूर नींद लेने वाले लोगों की तुलना में दिन में नींद व खर्राटे भरने वाले लोगों में ग्लूकोमा का खतरा 11 फीसदी बढ़ जाता है. वहीं, अनिद्रा और छोटी या लंबी नींद वाले लोगों में यह खतरा 13 फीसदी तक बढ़ जाता है. रिसर्चर्स के अनुसार, साल 2040 तक दुनियाभर में लगभग 11.2 करोड़ लोग ग्लूकोमा से प्रभावित हो सकते हैंं.

नींद लेना है जरूरी

एक्‍सपर्ट्स बताते हैं कि अच्‍छी नींद न लेने से हमारी निर्णय लेने की क्षमता, सीखने की क्षमता, हमारे व्‍यवहार/स्वभाव और हमारी याद्दाश्‍त पर बहुत बुरा असर पड़ता है. ग्लूकोमा आंख से दिमाग को जोड़ने वाली ऑप्टिक तंत्रिका को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है, जिस वजह से आंखों की संवेदनशील कोशिकाओं का क्षरण होने लगता है. अगर समय पर इलाज न मिले तो आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है.

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