भारत के प्रत्येक 8वें व्यक्ति को ग्लूकोमा विकसित होने का खतरा….जानिए इसके लक्षण और इलाज

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Glaucoma: ग्लूकोमा आंखों से जुड़ी एक खतरनाक बीमारी है जिसे हम आम बोल चाल की भाषा में काला मोतियाबिंद कहते हैं. यह बीमारी ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाती है. यह वही ऑप्टिक नर्व है जिसके जरिए आंख से देखी गई जानकारी आपके मस्तिष्क तक पहुंचती है. आमतौर पर आंख के अंदर आसामान्य रूप से बहुत अधिक दबाव के कारण ग्लूकोमा होता है. आंख के अंदर बढ़ा हुआ प्रेशर ऑप्टिक नर्व के टिशूज को नष्ट कर सकता है जिससे नजर कमजोर होने के साथ ही अंधापन भी हो सकता है.

ऑप्टिक नर्व काफी सेंसिटिव होता है इसलिए इस पर जरा भी प्रेशर पड़ने पर यह ब्लॉक हो जाती है और दिखना बंद हो जाता है.आई हॉस्पिटल के ग्लूकोमा विभाग की सीओओ और चिकित्सा निदेशक डॉ रीना चौधरी से मिली जानकारी के मुताबिक ग्लूकोमा आमतौर पर साइलेंट विजन लॉस का कारण बनता है, इसमें हल्के आंखों के दर्द, सिरदर्द और रोशनी के चारों ओर रेनबो कलर जैसा महसूस होता है.

क्या कहती है राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल की रिपोर्ट

राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के हाल के आंकड़े बताते हैं कि भारत और चीन में इससे सबसे ज्यादा लोग पीडि़त हैं.भारत में लगभग 40 मिलियन व्यक्तियों, या प्रत्येक 8वें व्यक्ति को ग्लूकोमा है या इसके विकसित होने का खतरा है.40 साल और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों में, लगभग 11.2 मिलियन ग्लूकोमा से पीड़ित हैं, जिनमें 1.1 मिलियन नेत्रहीन हैं, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं. एशिया में, ग्लूकोमा 2040 तक अतिरिक्त 27.8 मिलियन व्यक्तियों को प्रभावित करने का अनुमान है.

इन लोगों को ग्लूकोमा का उच्च जोखिम रहता है

वैसे तो ग्लूकोमा किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन मुख्य रूप से 40 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को प्रभावित करता है. जो लोग उच्च म्योप्स हैं, मधुमेह रोगी हैं, आंखों के आघात का इतिहास रखते हैं, ग्लूकोमा का पारिवारिक इतिहास है, या लंबे समय से कॉर्टिकोस्टेरॉयड दवाएं ले रहे हैं, ऐसे लोगों में ग्लूकोमा विकसित करने का उच्च जोखिम है.अगर ग्लूकोमा की पहचान जल्दी कर ली जाती है तो आपके आंखों की रोशनी को अधिक नुकसान से बचाया जा सकता है.

ग्लूकोमा से  बचाव कैसे करें

नियमित आंखों की जांच और बड़े पैमाने पर जांच से इसकी जल्द पहचान और रोकथाम की सुविधा मिल सकती है.लास्ट  स्टेज में अगर इसे डायग्नोसिस किया जाता है तो सर्जरी से इसका इलाज किया जा सकता है. 40 साल की उम्र के बाद ग्लूकोमा होने के चांसेस बढ़ जाते हैं ऐसे में आप रेगुलर चेकअप कराते रहें. विशेषज्ञ के मुताबिक ग्लूकोमा से बचने के लिए साल में कम से कम एक बार आंखों के प्रेशर की जांच करानी चाहिए. इससे समय रहते ग्लूकोमा पर काबू पाया जा सकता है. ग्लूकोमा के इलाज में आंखों पर दबाव कम किया जा सकता है. इसके लिए आई ड्रॉप्स दवाएं लेजर जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी करनी पड़ सकती है.

Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.

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