‘ट्रेन नंबर 653’की दर्दनाक कहानी: देखते ही देखते समंदर में समा गई पूरी ट्रेन


नई दिल्ली: 22 दिसंबर 1964 की रात मौसम बहुत खराब हो चुका था। तेज हवाएं चल रही थी। बारिश हो रही थी। चारों तरफ अंधेरा छा गया था। मौसम खराब होता जा रहा था। विनाशकारी चक्रवाती तूफान से घंटेभर पहले धनुषकोडी रेलवे स्टेशन में स्टेशन मास्टर आर. सुंदरराज स्टेशन बंद कर घर चले गए। उन्हें पता नहीं था कि आज जिस दफ्तर में वो ताला लगा रहे हैं उसे दोबारा खोलने का मौका उन्हें नहीं मिलेगा। इस स्टेशन को और बढ़ रही ट्रेन नंबर 653 मौत की ओर बढ़ रही थी। सालों बीच जाने के ेबाद भी इस हादसे का दर्द लोगों के रोंगटे खड़े कर देता है। आज भी अगर आप रामेश्वरम से रामसेतु की ओर जाएंगे तो रास्ते में आपको कई किमी में फैला विरान खंडहर दिख जाएगा। ये खंडहर उस भीषण तबाही की दर्दनाक कहानी को बयां करते हैं। भारतीय रेलवे के इतिहास में इस रेल हादसे को सबसे दर्दनाक हादसों में तौर पर याद किया जाता है। इस हादसे में देखते ही देखते पूरी की पूरी ट्रेन समंदर के लहरों में समा गई।

दर्दनाक हादसा, जो आज भी डराती है

बात 66 साल पुरानी है, लेकिन उसकी कहानी आज भी रोंगटे खड़े कर देती है। 15 दिसंबर 1964 को भयंकर तूफ़ान की चेतावनी दी गई। मौसम ने करवट लेना शुरू कर दिया। तेज़ तूफ़ान के साथ बारिश होने लगी। तूफान 21 दिसंबर को और विकराल रूप लेने लगा। 22 दिसंबर 1964 को श्रीलंका से उठा चक्रवाती तूफ़ान 110 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से धनुषकोडी की ओर बढ़ रहा था। पांबन आईलैंड से टकराने के बाद इसकी रफ्तार बढ़कर 280 किमी प्रति घंटे तक पहुंच गई। तूफान तबाही मचाते हुए आगे बढ़ रहा था।

एक गलती और सब खत्म

रोज की तरह ट्रेन नंबर 653 पांबन स्टेशन से धनुषकोडी रेलव स्टेशन के लिए निकल पड़ी। पैसेंजर रात 11.55 बजे के करीब धनुषकोडी से कुछ किमी की से गुजर रही थी। मौसम बहुत खराब हो चुका था। तूफान और भारी बारिश के कारण रेलवे सिग्नल खराब हो चुके थे। सिग्नल नहीं मिलने के कारण ट्रेन के लोको पायलट ने ट्रेन को धनुषकोडी रेलवे से कुछ दूरी पर रोक दिया। काफी देर इंतजार करता रहा, लेकिन जब सिग्नल नहीं मिला तो लोको पायलट से रिस्क उठाने का फैसला किया। उसने भीषण तूफान के बीच रेल को आगे बढ़ाने का फैसला किया। तूफान के बीच ट्रेन नंबर 653 धनुषकोडी स्टेशन की तरफ बढ़ रही थी।


देखते ही देखते समंदर में समा गई पूरी ट्रेन

चक्रवाती तूफान और भारी बारिश के बीच ट्रेन नंबर 653 समंदर के ऊपर बने पांबन ब्रिज से गुजर रही थी। लोको पायलट से तूफान के कारण ट्रेन की स्पीड काफी कम रखी थी। पंबल ब्रिज पर ट्रेन धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। लेकिन अचानक लहरें इतनी तेज़ हो गई कि ट्रेन को कंट्रोल कर पाना नामुमकिन हो गया। ट्रेन का पिछला डिब्बा समंदर की लहरों में समा गया। देखते ही देखते 6 डिब्बों के साथ पूरी ट्रेन समंदर की गहराईयों में समा गई। ट्रेन में सवार 110 यात्री और 5 रेल कर्मचारी समंदर की लहरों में बह गए।

कहा तो ये भी जाता है कि उस ट्रेन में कई ऐसे यात्री थे, जो बिना टिकट सवार हुए थे। इस दर्दनाक हादसे में मरने वालों की संख्या 200 के करीब बताई गई। इस तूफान ने धनुषकोडी रेलवे स्टेशन का नामो निशान तक मिटा दिया। इस चक्रवाती तूफान में करीब 2000 लोगों की जान चली गई। सिर्फ धनुषकोडी में ही 1000 से अधिक लोग मारे गए थे। आज तक इस तूफान के निशान धनुषकोडी में देखने को मिलती है। विरान खंडहर इस दर्दनाक हादसे की कहानी बयां करते हैं। रेलवे के इतिहास में इस हादसे के दर्दनाक रेल हादसे के तौर पर जाना जाता है।

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