India’s Iconic Budgets: सुपर टैक्स से लाइसेंस राज के खात्मे तक… वे ऐतिहासिक बजट जिन्होंने बदल दी देश की आर्थिक तस्वीर

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वैसे तो देश में हर साल बजट पेश किया जाता है, लेकिन इनमें कुछ ऐसे हैं जिन्होंने देश की इकॉनमी की दिशा और दशा को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। देश में अलग-अलग पार्टियों (Political Parties) की आर्थिक विचारधारा (Economic Ideology) भी अलग-अलग रही है। यही वजह है कि सत्तारूढ़ दलों ने बजट में अपनी सोच के हिसाब से बदलाव किए। इनमें कई बजट देश की इकॉनमी की दिशा-दशा को बदलने वाले साबित हुए। इनमें खासकर 1947, 1951, 1968, 1991 और 2014 के बजट शामिल हैं। ये ऐसे बजट रहे जिन्होंने देश की इकॉनमी को नई राह दिखाई और इसे नया आकार दिया।

1947: आजाद भारत का पहला बजट

1947-

यह आजादी के बाद देश का पहला बजट था। देश के पहले वित्‍त मंत्री आर के षनमुखम चेट्टी (RK Shanmukham Chetty) ने 26 नवंबर 1947 को इसे पेश किया था। यह बजट 15 अगस्‍त 1947 से 31 मार्च 1948 तक के लिए पेश किया गया था। भारत के सामने पाकिस्‍तान से आने वाले शरणार्थियों को बसाने की बड़ी चुनौती थी। इसके लिए सरकार के पास पैसा नहीं था। ऐसे में बजट ने सरकार के खर्चों का मार्ग प्रशस्‍त किया। देश का पहला बजट 197.39 करोड़ रुपये का था जिसका 46 फीसदी हिस्सा डिफेंस सर्विसेज डिपार्टमेंट को अलॉट किया गया था। इसमें किसी भी नए टैक्स का प्रावधान नहीं किया गया।

1951: योजना आयोग

1951-

यह गणतांत्रिक भारत का पहला बजट था जिसे तत्कालीन वित्‍त मंत्री जॉन मथाई ने 28 फरवरी 1950 को पेश किया था। इस बजट ने देश में योजना आयोग की स्‍थापना का रास्‍ता साफ किया जिसने देश के भीतर मौजूद संसाधनों के अधिकतम इस्‍तेमाल से जरूरत के मुताबिक, अलग-अलग क्षेत्रों में विकास का खाका खींचा। मोदी सरकार ने इसका नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया है। यह पहला मौका था जब पहली बार बजट की विस्‍तृत कॉपी पेश की गई। 1.21 लाख रुपये से अधिक इनकम वालों पर 8.5 आना प्रति‍ रुपये के हिसाब से ‘सुपर टैक्‍स’ लगाया गया।

1957: वेल्थ टैक्स

1957-

कांग्रेस सरकार के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री टी टी कृष्णामाचारी ने 15 मई, 1957 को बजट पेश किया था। इस बजट में कई बड़े फैसले लिए गए। इस बजट में आयात के लिए लाइसेंस अनिवार्य किया गया। नॉन-कोर प्रोजेक्ट्स के लिए बजट का आवंटन वापस ले लिया गया। निर्यातक को सेफ्टी के लिए एक्सपोर्ट रिस्क इन्श्योरेंस कॉरपोरेशन बनाया गया। बजट में वेल्थ टैक्स भी लगा और एक्साइज ड्यूटी में 400 फीसद तक का इजाफा हुआ। इस बजट के कई सकारात्मक और नकारात्मक पहलू रहे।

1968: पीपुल सेंसिटिव बजट

1968-

यह देश का पहला पहला पीपुल सेंसिटिव बजट था। इसे तत्कालीन वित्‍त मंत्री मोरारजी देसाई ने 29 फरवरी 1968 को पेश किया था। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसमें फैक्‍टरी के गेट पर सामान की स्‍टैंपिंग और एसेसमेंट की बाध्‍यता खत्‍म कर दी गई। इसकी जगह सेल्‍फ एसेसमेंट का सिस्‍टम लाया गया। इसका असर यह हुआ कि देश में मैन्‍युफैक्‍चरिेंग को तेज करने में काफी मदद मिली। इस बजट में Spouse allowance की भी खत्म कर दिया गया।

1973: ब्लैक बजट

1973-

यह वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण द्वारा 28 फरवरी, 1973 को पेश किया गया। इसमें सामान्य बीमा कंपनियों, भारतीय कॉपर कॉरपोरेशन और कोल माइन्स के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ रुपये उपलब्ध करवाए गए। वित्त वर्ष 1973-74 में बजट में अनुमानित घाटा 550 करोड़ रुपये रहा था, ऐसा कहा जाता है कि कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण किए जाने से काफी असर पड़ा। कोयले पर सरकार के अधिकार से बाजार में कॉम्पिटिशन खत्म हो गया।

1991: आर्थिक उदारीकरण

1991-

इसे देश के इतिहास में सबसे क्रांतिकारी बजट माना जाता है क्योंकि इससे भारत में उदारीकरण की शुरुआत हुई थी। उस समय भारतीय इकनॉमी नाजुक दौर में पहुंच चुकी थी। देश के सामने भुगतान संतुलन का संकट पैदा हो चुका था। सरकार के सामने सुधारों के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। तत्कालीन वित्‍त मंत्री मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को यह ऐतिहासिक बजट पेश किया था। इसमें आयात और निर्यात के क्षेत्र में बड़ा फैसला हुआ। नेहरू के दौर से चले आ रहे लाइसेंस राज को खत्म कर दिया गया। सभी बड़े सेक्‍टर देशी-विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिए गए। इसका असर यह हुआ कि भारत आज दुनिया की सबसे तेज ग्रोथ करने वाली अर्थव्‍यवस्‍थाओं में शामिल है।

2005 का बजट

2005-

इसे आम आदमी का बजट कहा जाता है। तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम (Finance Minister P Chidambaram) ने इसे 28 फरवरी, 2005 को पेश किया था। इसमें कॉरपोरेट टैक्स और कस्टम ड्यूटी में कमी के साथ-साथ मनरेगा (MNREGA) और आरटीआई (RTI) की घोषणा की गई थी। मनरेगा योजना से ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार और आमदनी मिली। साथ ही इससे पलायन रोकने में भी काफी मदद मिली।



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