US Fed Rate Hike : अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने से दुनिया में क्यों मच जाता है हाहाकार? इस बार हो सकता है 28 साल का सबसे बड़ा इजाफा

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नई दिल्ली : जैसे भारत में आरबीआई (RBI) है, ठीक वैसे ही अमेरिका का केंद्रीय बैंक है फेडरल रिजर्व (Federal Reserve)। आपने हाल ही में खबरों में पढ़ा होगा कि आरबीआई ने महंगाई ( Inflation) पर काबू पाने के लिए रेपो रेट (Repo Rate) को बढ़ा दिया है। रेपो रेट वह ब्याज दर (Interest Rate) होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। इसे प्रमुख ब्याज दर भी कहा जाता हैं। रेपो रेट बढ़ने पर सभी तरह के लोन महंगे हो जाते हैं। अब आरबीआई प्रमुख ब्याज दर बढ़ाता है तो उसका असर भारत तक ही सीमित होता है। लेकिन जब फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी करता है तो दुनियाभर में हाहाकार होने लग जाता है। यूएस फेड (US Fed) की बैठक से काफी पहले ही दुनियाभर के अखबार ब्याज दरों में संभावित बदलाव पर अनुमान लगाने लग जाते हैं। आज हम जानेंगे कि अमेरिका (America) में ब्याज दरें बढ़ने का दुनिया पर क्या असर होता है। इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, पहले जान लेते हैं कि आखिर इस वक्त यूएस फेड चर्चा में क्यों हैं।

28 साल की सबसे बड़ी रेट हाइक कर सकता है यूएस फेड

दरअसल, इस हफ्ते अमेरिका का केंद्रीय बैंक यूएस फेड प्रमुख ब्याज दरों पर फैसला लेने वाला है। यूएस फेड बुधवार को अपनी दो दिवसीय बैठक को पूरा करेगा और ब्याज दरों में बदलाव की घोषणा करेगा। दुनियाभर के कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बार फेड रिजर्व ब्याज दरों में 28 साल की सबसे बड़ी दर वृद्धि कर सकता है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक ब्याज दर में 0.75 फीसदी बढ़ोतरी की घोषणा कर सकता है। ब्याज दर में इतनी बड़ी बढ़ोतरी नवंबर 1994 के बाद सबसे अधिक होगी। बता दें कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक मार्च महीने से ब्याज दरों में 0.75 फीसद की बढ़ोतरी कर चुका है, जिससे यह दर 1 फीसदी हो गई है।

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शेयर बाजारों पर पड़ेगा बड़ा असर

कारोबार की दुनिया में यह कहावत है कि अमेरिका को छींक भी आती है, तो दुनिया को जुकाम हो जाता है। यूएस फेड की बैठक से पहले ही ब्याज दरों में बढ़ोतरी के अनुमान के चलते दुनिया भर के शेयर बाजारों (Share Markets) में गिरावट है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का सूचकांक सेंसेक्स (Sensex) भी सोमवार को 1457 अंक टूटकर बंद हुआ था। दरअसल अमेरिका में ब्याज दरें कम रहने से निवेशक वहां से कर्ज लेकर अच्छा रिटर्न पाने के लिए भारत जैसे उभरते बाजारों में निवेश करते हैं। जिसे कैरी ट्रेड कहा जाता है। जब अमेरिका में ब्याज दरें कम रहती हैं, तो एफपीआई निवेश (FPI Investment) के रूप में उभरते बाजारों में बंपर पैसा आता है। इससे शेयर बाजारों में मजबूती आती है। हम पिछले कई महीनों से देख रहे हैं कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से लगातार बिकवाली कर रहे हैं और इनफ्लो घट रहा है। ब्याज दरें बढ़ने से विदेशी निवेशकों का रिटर्न कम हो जाता है और वे डॉलर जैसे अन्य निवेश विकल्पों की तरफ देखते हैं।
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दुनिया भर में बढ़ जाती हैं दरें

अमेरिका में प्रमुख ब्याज दर बढ़ने पर दुनिया भर के देश अपने यहां भी प्रमुख ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने लगते हैं। भारत में भी आरबीआई ने रेपो रेट को बढ़ाना तब शुरू किया, जब अमेरिका द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की पूरी-पूरी उम्मीद थी। अदरअसल, होता यह है कि अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने के साथ-साथ ही अमेरिका और भारत सरकार के बांड के बीच का अंतर कम होता जाता है। इस अंतर के चलते वैश्विक निवेशक इंडियन सिक्युरिटीज से पैसा निकालने लगते हैं। भारतीय बांड बाजार से एफपीआई की निकासी ना हो, इसके लिए भारत में भी आरबीआई को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ती हैं। इसी तरह ही दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाएं भी ब्याज दरें बढ़ाती हैं।
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डॉलर के मुकाबले दूसरी करेंसीज की कम हो जाती है वैल्यू

अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ जाने से वहां की मुद्रा की कीमत बढ़ जाती है। डॉलर मजबूत होने लगता है। फलस्वरूप डॉलर की तुलना में रुपया जैसी दूसरी करेंसीज की वैल्यू घट जाती है। दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों द्वारा भारत से पैसा निकाला जाता है, तब भी रुपया कमजोर होगा। ऐसे में सरकार को रुपये (Indian Rupee) में मजबूती के लिए जल्द से जल्द कदम उठाने होते हैं।

महंगाई बन जाती है मुसीबत

अमेरिका में इस समय महंगाई दर 40 वर्षों की सबसे उच्च गति से बढ़ रही है। मई महीने में अमेरिका में महंगाई दर 8.6 फीसदी दर्ज हुई थी। महंगाई पर रोक लगाने के लिए ही फेड रिजर्व प्रमुख ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला ले रहा है। दरअसल होता यह है कि ब्याज दर बढ़ने से लोन महंगे हो जाते हैं। इससे लोगों की स्पेंडिंग कम हो जाती है। ऐसे में मांग घटती है और वस्तुओं की कीमतें गिरनी शुरू हो जाती हैं। दूसरी तरफ महंगाई को रोकने के लिए यूएस फेड ब्याज दर बढ़ाता है, तो डॉलर मजबूत होता है। फलस्वरूप रुपये की कीमत घट जाती है। रुपया कमजोर होने से भारत सरकार को कच्चे तेल जैसे आयातित उत्पादों के लिए अधिक कीमत चुकानी होती है। फलस्वरूप पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी और देश में महंगाई आएगी।



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