Ruchi Soya Dark Truth: कभी 3.5 रुपये तो कभी 15000… रुचि सोया के शेयरों में हुआ था बड़ा खेल, रिटेलर्स यूं हुए बर्बाद और पतंजलि हुई आबाद

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नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों से रुचि सोया (Ruchi Soya) काफी चर्चा में है। हाल ही में इसका एफपीओ (Ruchi Soya FPO) भी आया था। उसके बाद से कंपनी के शेयर में तगड़ी तेजी देखने को मिली। अभी कंपनी का शेयर करीब 923 रुपये (Ruchi Soya Share Price) पर ट्रेड कर रहा है। ये वही रुचि सोया है जिसका शेयर कभी करीब 15,000 रुपये पर ट्रेड हो रहा था तो कभी इसकी कीमत महज 3.5 रुपये ही रह गई थी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं रुचि सोया का इतिहास (Ruchi Soya History)। हम बताएंगे कि कैसे रुचि सोया ने वक्त पर रेकॉर्ड बनाया और फिर कैसे वह गिरते-गिरते महज 3.5 रुपये पर आ गई।

1973 में शुरू हुई थी कंपनी
इस कहानी की शुरुआत होती है 1963 में, जब पंतनगर और जबलपुर जैसी यूनिवर्सिटी में सोया पर रिसर्च शुरू हुआ। इसके बाद मध्य प्रदेश से शुरू होकर देश के कई हिस्सों में सोयाबीन की खेती होने लगी। मौका का फायदा उठाते हुए दिनेश सहारा ने 1973 में सोया का बिजनस शुरू कर दिया। शुरुआत में सिर्फ सोया का बिजनस था, लेकिन बाद में खाने के तेल में भी बिजनस करने लगे। देखते ही देखते रुचि सोया देश की एक बड़ी कंपनी बन गई।

कंपनी ने लिया करीब 5 हजार करोड़ रुपये का लोन

उस दौर में लोगों को अंदाजा भी नहीं था कि कभी ये कंपनी फेल भी हो सकती है, लेकिन ऐसा हुआ। दरअसल इस कंपनी ने 2010 से 2015 के बीच करीब 5 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया। यहां बड़ा सवाल ये है कि आखिर कंपनी ने ये कर्ज क्यों लिया। दरअसल, अक्टूबर 2011 में इंडोनेशिया ने पाम ऑयल पर ड्यूटी बढ़ा दी, जहां से रुचि सोया पाम ऑयल खरीदता था और फिर उसे रिफाइन करता था। ऐसे में रुचि सोया की लागत बढ़ी और उसे तेल के दाम बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा। वहीं दूसरी ओर इंडोनेशिया ने रिफाइंड ऑयल पर ड्यूटी घटा दी, जिससे बड़े-बड़े प्लेयर्स को रुचि सोया से तेल खरीदने के बजाय इंडोनेशिया के तेल खरीदना सस्ता पड़ने लगा।

यहीं से शुरू हुआ कंपनी का पतन
ऐसे में हाथ से निकलना बाजार देख रुचि सोया ने कम मार्जिन पर सस्ते में तेल देना शुरू कर दिया। साथ ही क्रेडिट की सुविधा भी दी कि जब सामान बिक जाए तो पैसे दे देना। इन्हीं सब के लिए कंपनी ने लोन लिया था। देखते ही देखते कंपनी के करीब 5,000 करोड़ रुपये बाजार में फंस गए। जिन्होंने उधार पर सामान लिया वहां से पैसे नहीं मिले और दूसरी ओर बैंकों ने भी अपना लोन वापस मांगना शुरू कर दिया। नतीजा ये हुआ कि कंपनी एनसीएलटी में चली गई और उसकी दिवालिया प्रक्रिया शुरू हो गई।

रिटेल इंवेस्टर्स को हुआ भारी नुकसान

2019 में जब कंपनी डीलिस्ट हुई, उस वक्त कंपनी के शेयर की कीमत करीब 3.5 रुपये थी। कुछ ही वक्त बाद जब कंपनी दोबारा लिस्ट हुई तो शेयर की कीमत 17 रुपये हो गई। यानी शेयर की कीमत बहुत कम वक्त में 500-600 फीसदी बढ़ गई। अब आपको लग रहा होगा कि डीलिस्टिंग से पहले जिनके पास रुचि सोया के शेयर होंगे, उनकी तो चांदी हो गई होगी, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल, पतंजलि ने रुचि सोया को खरीदने के बाद शेयर बाजार से यह कहा था कि वह रिटेलर्स का हेयरकट 99 फीसदी से कम कर रही है। यानी जिनके पास डीलिस्टिंग से पहले 100 शेयर थे, उन्हें लिस्टिंग के बाद सिर्फ 1 शेयर मिला। यही वजह थी की कंपनी में 95 फीसदी से भी अधिक शेयर प्रमोटर्स के पास थे और बहुत ही कम शेयर रिटेल इंवेस्टर्स के पास थे। यहां एक बात जानना दिलचस्प है कि एनसीएलटी (NCLT) में गई किसी कंपनी को अगर कोई खरीदता है तो वह रिटेलर्स को जितना चाहे उतना हेयरकट दे सकता है, अगर कुछ भी ना दे तो भी उस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता।

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रुचि सोया के शेयरों में हुआ था बड़ा खेल
2002 में रुचि सोया के शेयर कीमत 150 रुपये थी, जो 2008 में 15,000 रुपये से भी ज्यादा हो गई। अगले डेढ़ साल में यह फिर से 2,000 रुपये तक पहुंच गई। वहीं करीब 2 साल में फिर से कीमतें 13 हजार रुपये के करीब जा पहुंचीं। बहुत से लोगों को यह उतार-चढ़ाव आम लगा, लेकिन जांच एजेंसियों का माथा ठनका और जांच हुई। बात में 2010 में पता चला कि बाजार में कुछ ऑपरेटर्स सारा खेल खेल रहे थे। जब कीमत कम थी उन्होंने खूब सारे शेयर खरीद कर कीमतें बढ़ाईं और फिर रिटेलर्स ने भी तेजी से शेयर खरीदने शुरू कर दिए। जब दाम काफी ऊपर चले गए तो सारे शेयर बेच दिए और बाजार से निकल गए। पंप एंड डंप के इस खेल से रिटेलर्स को काफी नुकसान हुआ।

इस तरह अडानी को हराकर पतंजलि ने जीती बोली

दिवालिया प्रक्रिया के वक्त कंपनी पर करीब 12 हजार करोड़ रुपये का कर्ज था। गौतम अडानी की कंपनी अडानी विल्मर ने रुचि सोया को खरीदने के लिए करीब 5,500 करोड़ रुपये की बोली लगाई और जीत गई। तभी पतंजलि ने इस बिड को इनवैलिड करार दिया और कहा कि सेक्शन 29ए के तहत किसी डिफॉल्टर (Defaulter) के रिश्तेदार बोली नहीं लगा सकते। यहां आपको बता दें कि रोटोमैक के फाउंडर विक्रम कोठारी डिफॉल्टर हैं और गौतम अडानी उनके रिश्तेदार हैं। ऐसे में पतंजलि ने सिर्फ 4,350 करोड़ रुपये में बोली जीत ली। करीब 1,100 करोड़ रुपये तो पतंजलि ने अपने पास से दिए, जबकि बाकी के पैसे उसने बैंकों से लोन लिया। दिलचस्प ये है कि पतंजलि को रुचि सोया खरीदने के लिए उन्हीं बैंकों ने लोन दिया, जिनका पैसा पहले से ही रुचि सोया में फंसा हुआ था। बैंकों का जो पैसे फंसा था, उसका 50 फीसदी डील के तहत बैंकों को मिला, क्योंकि बैंकों का हेयरकट 50 फीसदी ही तय हुआ था।

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