Mover & Packers: सावधान रहें, स्कूल और ऑफिस खुलते ही फर्जी पैकर्स-मूवर्स हो गए हैं सक्रिय, ऐसे ग्राहकों को फंसाते हैं और सामान लेकर हो जाते हैं चंपत

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नई दिल्ली: कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम (Work From Home) का आनंद उठाने वाले एक बार फिर से नौकरी वाले शहर में लौट रहे हैं। कुछ लोगों का अभी भी वर्क फ्रॉम होम चल रहा है, लेकिन बच्चों के स्कूल खुल गए हैं, इसलिए शहर लौटना पड़ रहा है। ऐसे में सामान की ढुलाई करने वाले पैकर्स एंड मूवर्स (Packers & Movers) की मांग बढ़ गई है। इसी के साथ ठगी की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं। स्थिति यह है कि हर रोज दो तीन ठगी के मामले सामने आने लगे हैं।

डिजिटल काल में बढ़ी है ठगी
जब मामला डिजिटल नहीं हुआ था, तब लोग ट्रांसपोर्ट कंपनियों के दफ्तर या मूवर्स एंड पैकर्स के पास जाकर बुकिंग कराते थे। जैसे ही मामला डिजिटल हुआ, फर्जी कंपनियों की बाढ़ आ गई। अब कोई व्यक्ति जैसे ही मूवर्स की ऑनलाइन खोज करता है, असली कंपनियों के साथ साथ सैकड़ों फर्जी कंपनियों का नंबर आपके सामने आ जाता है। लोग इनके झांसे में इसलिए फंसते हैं कि ये स्थापित कंपनियों के मुकाबले आधी कीमत पर सामान पहुंचाने का लालच हैं। एक बार आप इनके झांसे में आ गए तो समझ लीजिए कि अब आपके सामानों की खैर नहीं।

अब एमएफआई आई है सामने
इस तरह के बढ़ते मामलों को देख कर पैकर्स मूवर्स कंपनियों के शीर्ष संगठन मूवर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (MFI) सामने आया है। एमएफआई के प्रवक्ता और सचिव अनूप मिश्रा का कहना है कि इस समय यह उद्योग पांच अरब डॉलर का हो गया है। इसमें प्रत्यक्ष रूप से 40 से 45 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। जबकि अप्रत्यक्ष रूप की संख्या कई गुना ज्यादा है। लेकिन ठगी की वजह से पूरा सेक्टर बदनाम हो रहा है। इसलिए यह संगठन अब सक्रिय रूप से सामने आया है और लोगों को जागरूक कर रहा है। इन्होंने सरकार से इस क्षेत्र को रेगुलेट करने तथा नियम बनाने की भी मांग की है।

कैसे करें असली पैकर्स मूवर्स की पहचान
अनूप मिश्रा का कहना है कि कोई भी ग्राहक पैकर्स एंड मूवर्स की खोज के लिए इंटरनेट के सर्च इंजन पर जाने के बजाय सीधे संगठन की साइट पर आ सकते हैं। संगठन का मूवर्स फेडरेशन डॉट ओआरजी (https://moversfederation.org) के नाम से साइट है। चाहें तो 7090678678 पर कॉल या ब्वाट्सऐप करके भी असली मूवर्स का नाम कंफर्म कर सकते हैं। इस पर सभी शहरों के असली मूवर्स के नाम हैं। फर्जी मूवर्स के भी नाम है इस साइट पर, इस सवाल पर मिश्रा का कहना है कि वह किसी को फर्जी बताने से बचते हैं। क्योंकि इसमें काफी झोल है और इसमें मुकदमेबाजी का भी खतरा है। इसलिए बेहतर तरीका यह है कि संगठन असली मूवर्स का नाम बताते हैं ताकि लोग ठगों के चंगुल में नहीं फंसे। उनका कहना है कि बड़े मूवर्स के ब्रांड से मिलते-जुलते नाम से सैकड़ों नहीं हजारों कंपनियां बना ली गई हैं।

महज एक मोबाइल सिम से शुरू हो जाती है कंपनी
संगठन का कहना है कि इस उद्योग के लिए लाइसेंसिंग की कोई नीति नहीं है। इसलिए फर्जी कंपनियां कुछ हजार रुपये में वेबसाइट बनाया, एक मोबाइल नंबर लिया और ठगी शुरू। वह साइट पर बेहद कम भाड़ा बता कर लोगों को फंसाते हैं और किराए के एक ट्रक और कुछ मजदूरों को लेकर काम शुरू कर देते हैं। फिर वह निर्धारित स्थान पर पहुंचाने की बजाय वह बीच रास्ते में ही आपका माल कहीं बेच देती हैं। जब तक ग्राहक की आंख खुलती है, कंपनी बंद हो चुकी है।

कैसे फंसाते हैं ग्राहकों को
संगठन का कहना है डिजिटल का उपयोग बढ़ने से जब उपभोक्ता मूवर्स पैकर्स के लिए इंटरनेट पर सर्च करता है तो स्थापित कंपनियों के साथ इन फर्जी कंपनियों के पास भी उसकी सूचना चली जाती है। इसके बाद वह ग्राहक के घर सामानों का सर्वे करने घर पर पहुंच जाता है। जब सामान के दाम का अंदाजा लग जाता है तो फिर वह ग्राहकों को बेहद सस्ते भाड़े का पेशकश कर ग्राहक को आसानी से फंसा लेते हैं। एक बार सामान ट्रक में लोड हो गया, फिर ग्राहकों के हाथ में कुछ नहीं बचता है। एमएफआई का कहना है कि यदि कोई ग्राहक उनके पास पहुंच जाता है, उन्हें ठगों के चंगुल में फंसने से बचा लिया जाता है।

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