Crude oil hike: आम आदमी, कंपनियां, सरकार और निवेशक.. कच्चे तेल में उबाल से किस पर कितना पड़ेगा बोझ

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नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई खत्म होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं और इस वजह से कच्चे तेल की कीमतों में आग लगी हुई है। रविवार को कारोबार के दौरान इसकी कीमत 139 डॉलर के पार चली गई थी। इससे महंगाई बढ़ने और आरबीआई के नीतिगत रुख में भारी बदलाव की आशंका के कारण शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिली। तेल की बढ़ती कीमत का चौतरफा असर हो सकता है। इससे आने वाले दिनों में कंपनियों, निवेशकों, आम लोगों और सरकार को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

कंपनियों पर 23 अरब का बोझ
Kotak Institutional Equities के मुताबिक अगर कच्चे तेल की औसत कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल रहती है तो भारतीय इकॉनमी पर 70 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। इससे महंगाई बढ़ेगी और कंपनियों का मुनाफा प्रभावित होगा। अनुमान के मुताबिक इससे इंडस्ट्रियल फ्यूल पर आठ अरब डॉलर, फ्रेट कॉस्ट 11 अरब डॉलर और दूसरे उत्पादों की कीमत पर चार अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

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आम आदमी: 50 अरब डॉलर
ब्रोकरेज का कहना है कि आने वाले दिनों में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हो सकती है। कोटक के मुताबिक इससे लोगों पर 22 अरब डॉलर का सीधा बोझ पड़ सकता है। इसके अलावा तेल की कीमतें बढ़ने से फ्यूल एवं फ्रेट लागत बढ़ेगी और कंपनियां इसका बोझ भी कंपनियां ग्राहकों पर पड़ेगा। इसका बोझ खासकर लोअर और मिडल इनकम परिवारों पर पड़ेगा। कुल मिलाकर उन पर 50 अरब डॉलर का बोझ पड़ेगा।

सरकार: 20 अरब डॉलर
कोटक ने कहा कि सरकार को डीजल और पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती मिल सकती है। लेकिन सरकार एलपीजी सब्सिडी पर हाथ खड़े कर सकती है। कोटक के मुताबिक अगर सरकार पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती करती है तो उसके रेवेन्यू पर 20 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। साथ ही किसानों की इनकम को सपोर्ट करने के लिए सरकार को विभिन्न फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है। सरकार की खाद्य सब्सिडी 3.5 अरब डॉलर बढ़ सकती है।

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निवेशकों को 200 अरब डॉलर का नुकसान
तेल की कीमतों में तेजी से शेयर बाजार में भारी गिरावट आई है। इससे निवेशकों की 200 अरब डॉलर से अधिक वेल्थ फुर्र हो चुकी है। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से कंपनियों की कमाई प्रभावित होगी। साथ ही मांग में कमी आएगी जिससे रेवेन्यू प्रभावित होगा। इससे इक्विटीज में निवेशकों की धारणा भी कमजोर होगी। Morgan Stanley के मुताबिक तेल की कीमतों में हालिया तेजी से चालू खाते का घाटा 75 बेसिस और महंगाई 100 बीपीएस बढ़ सकती है।



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