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कोविड
कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए दुनियाभर में सबसे कठोर नियमों को लागू करने के बावजूद चीन और हांगकांग में संक्रमण के मामले बीते दो साल के रिकॉर्ड स्तर पर हैं.
अधिकांश देश अब कोरोना वायरस के साथ जीने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में चीन की ‘ज़ीरो-कोविड’ पॉलिसी कितने दिनों तक टिक सकेगी, ये एक बड़ा सवाल है.
बीते दो साल से कोरोना को नियंत्रित करने के लिए चीन ने लॉकडाउन और कड़े प्रतिबंधों का सहारा लिया. इन प्रतिबंधों का असर भी दिखा.
जब साल 2020 में पूरी दुनिया में कोरोना के मामले और इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा था, तब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने व्यापक स्तर पर लॉकडाउन सहित कई कठोर प्रतिबंधों के ज़रिए कोरोना महामारी प्रबंधन में चीन की सफलता का बखान किया. उन्होंने कहा कि वायरस से निपटने के लिए चीन के उपाय सबसे ज़्यादा कारगर साबित हुए हैं.
इसके बाद चीन और हांगकांग में ‘ज़ीरो-कोविड’ मॉडल लागू किया गया. लेकिन जल्द ही चीज़ें पहली सी नहीं रहीं.
इस पॉलिसी को पहला धक्का तब लगा जब चीन का प्रशासन कोरोना के डेल्टा वेरिएंट से बढ़ते मामलों की वजह से 2021 में फिर से बड़े पैमाने पर लॉकडाउन लगाने को मजबूर हो गया. इसके बाद ये सवाल खड़े होने लगे कि चीन अपनी ज़ीरो कोविड पॉलिसी को कितने समय तक बरकरार रख पाएगा. और अब ओमिक्रॉन ने एक बार फिर इन सवालों का दायरा बढ़ा दिया है.
चीन में हर रोज़ कोरोना के हज़ारों नए मामले आ रहे हैं और देश के उत्तर-पूर्वी प्रांत जिलिन में लाखों लोग लॉकडाउन झेल रहे हैं. वुहान में कोरोना की शुरुआत के दिनों के बाद ये पहली बार है जब चीन ने पूरे प्रांत में लॉकडाउन लगाया हो.
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अब तक वायरस से लगभग अछूते रहे हांगकांग में भी रोज़ 30 हज़ार नए केस और 200 मौतें दर्ज की जा रही हैं. शहर में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है. शहर से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, जिनमें बीमार लोगों को अस्पताल के बाहर देखा जा सकता है और वहीं उनका प्राथमिक इलाज हो रहा है. ऐसी स्थिति बीते दो सालों के अंदर इस देश में नहीं देखी गई.
आधिकारिक तौर पर चीन की सरकार ने अपनी ज़ीरो-कोविड पॉलिसी से डिगने के कोई संकेत नहीं दिए हैं. लेकिन चीन ने महामारी से निपटने को लेकर अपने रुख में थोड़ी नरमी ज़रूर दिखाई है.
इसी हफ्ते, चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने कहा कि वो अपने नियमों में बदलाव कर रही है ताकि हल्के लक्षण वाले मामलों को भी अस्पताल ले जाने की बजाय किसी कोविड सेंटर पर ही इलाज हो सके. क्वारंटाइन सेंटर से मरीज को छुट्टी देने की प्रक्रिया में भी ढील दी गई है.
हांगकांग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर जिन डोंग-यान ने बीबीसी को बताया, ”पहले चीन असिम्प्टोमटिक और हल्के लक्षण वाले सभी मरीजों को अस्पताल में भर्ती करता था”
”अब वे लोगों को स्थानीय स्तर पर ही आइसोलेट करने का प्रस्ताव दे रहे हैं. इस कदम से पता चलता है कि वे मानते हैं कि ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जिन्हें ज्यादा मदद की जरूरत नहीं है”
हाल ही में हुई चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की बैठक के दौरान चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने कहा था कि चीन कोविड-19 से लड़ने की नीति को ‘वैज्ञानिक और लक्ष्य आधारित’ बनाना जारी रखेगा. सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चेन गैंग ने कहा, ”प्रीमियर ली के भाषण से संकेत मिलता है कि सरकार आने वाले समय में प्रतिबंधों को ढीला करने के लिए तैयार है”
”डायनमिक पॉलिसी के तहत बीमारी को रोकने और लोगों को सामान्य जीवन जीने के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया जाएगा”. जमीनी स्तर पर भी नजरिए में एक बड़ा बदलाव आया है.
पिछले साल चीन के शीर्ष महामारी विज्ञानी झांग वेनहोंग ने सुझाव दिया था कि चीन को वायरस के साथ ही जीवन जीना होगा. इस बयान के बाद उनकी काफी आलोचना हुई. कुछ लोगों ने उन्हें देशद्रोही कहा तो कुछ ने कहा कि झांग वेनहोंग चीन की कोविड से लड़ने के नीति को कमजोर करने के लिए विदेशी ताकतों के साथ मिलीभगत कर रहे थे.
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लेकिन इसी हफ्ते डॉ झांग ने चीनी सोशल मीडिया पर एक और मैसेज पोस्ट किया जिसे लेकर अलग प्रतिक्रिया सामने आई.
उन्होंने कहा कि इस वक्त में चीन के लिए ज़ीरो-कोविड रणनीति को बनाए रखना जरूरी है. साथ ही भविष्य में ज्यादा मुकाबला करने वाली रणनीति की और बढ़ने से डरना नहीं चाहिए.
उन्होंने कहा ”इस वायरस के साथ डर को कम करने के लिए हमें कदम उठाने की जरूरत है. जिन देशों ने व्यापक टीकाकरण और प्राकृतिक संक्रमण दर हासिल की है वहां ओमिक्रॉन काफी हल्का हो गया है. उन देशों में ये फ्लू से भी कम घातक हो सकता है”.
इस बार उनकी आलोचना नहीं हुई बल्कि व्यापक रूप से प्रशंसा की गई. एक टिप्पणी थी जिसमें कहा गया, ”डॉ झांग, मुद्दों पर आपके वैज्ञानिक और तर्कसंगत मत के लिए धन्यवाद”. अन्य लोगों ने पिछले सालों के संघर्षों को साझा किया जो दो साल से अधिक समय के लॉकडाउन के बाद बढ़ती निराशा के संकेत थे.
एक व्यक्ति ने कहा, ”पिछले कुछ सालों में मैंने बहुत कुछ सहा है. वायरस के चक्कर में मैंने अपनी स्वतंत्रता खो दी है ”
काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में वैश्विक स्वास्थ्य के सीनियर फेलो प्रोफेसर हुआंग यानजोंग के अनुसार, ”जीरो कोविड के लिए जन समर्थन में गिरावट है. मुझे लगता है कि खासतौर पर शंघाई जैसे बड़े शहरों में कुछ लोग कह रहे हैं कि ये बहुत ज्यादा हो हो गया है”.
उन्होंने कहा, ”जबकि जीरो कोविड के लिए अभी भी कुल मिलाकर लोगों का समर्थन है. इसे हाल ही में ओमीक्रॉन लहर ने कम किया है”
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चीन
विशेषज्ञों का कहना है कि हमें इस साल कोई बड़ा कदम उठाए जाने की संभावना नजर नहीं आती. खासकर अभी, जबकि ये सालों में अपने सबसे बड़े प्रकोप की चपेट में है. कई लोगों का मानना है कि अभी प्रतिबंधों में ढील देने से स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चरमरा सकती है और मृत्यु दर में भारी वृद्धि हो सकती है.
चीन के लोगों को हांगकांग को देखने की जरूरत है जो महामारी को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है. जहां मुर्दाघर और अस्पताल मरीजों से भरे हुए हैं.
प्रो हुआंग का कहना है कि चीन का सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन इस बात की घोषणा कर रहा है कि उसने बड़ी संख्या में लोगों को मरने से बचाया है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि खुलने से मामलों में तेजी से वृद्धि होगी.
मुश्किल ये है कि क्या आप मामलों में बड़ी बढ़त की वजह से थोड़े समय के लिए दर्द को स्वीकार करना चाहते हैं या फिर लंबे समय की स्थिरता के लिए मृत्यु?
प्रोफेसर चेन का कहना है, ”अगर प्रतिबंधों में ढील दी जाती है तो मौतों की संख्या बढ़ सकती है जिससे समाज में घबराहट बढ़ सकती है. ये कुछ ऐसा है जिसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील 20वीं पार्टी कांग्रेस के साल में अनुमति नहीं दी जाएगी.”
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शी जिनपिंग
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं पार्टी कांग्रेस देश में दशक की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं में से एक है. जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पद छोड़ना था और उनके दो कार्यकाल की सीमा समाप्त हो गई थी लेकिन इस सीमा को हटा दिया गया.
हेरिटेज फाउंडेशन के शोध संस्थान के माइकल कनिंघम के अनुसार शी जिनपिंग पार्टी प्रमुख के रूप में सत्ता में एक और कार्यकाल हासिल करेंगे और पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली होकर वे कांग्रेस से बाहर आएंगे.
कनिंघम ने एक रिपोर्ट में कहा, “सरकार आमतौर पर पार्टी कांग्रेस के वर्षों में स्थिरता बनाए रखने की दिशा की तरफ झुकती है, क्योंकि सत्ता में रहने वाले लोग साहसिक निर्णय लेने के बजाय संकट से बचने की कोशिश करते हैं, जो असफल होने पर उनके करियर की संभावनाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं”
शी जिनपिंग ने खुद गुरुवार को एक पोलित ब्यूरो की बैठक में कहा कि चीन अपनी ‘ज़ीरो-कोविड’ नीति पर कायम रहेगा, उन्होंने कहा, “जीत दृढ़ता से आती है”.
ऊपर से आने वाले इस स्पष्ट निर्देश के साथ, इसकी अधिक संभावना है कि अधिकारी इसके बजाय छोटे और धीरे धीरे उपाय करेंगे, जो पहले से ही किए जा रहे हैं, लेकिन अभी के लिए कोई ‘मौलिक’ बदलाव नहीं है. प्रो हुआंग कहते हैं, “ज़ीरो-कोविड’ नीति के साथ समस्या यह है कि यह जोखिमों को स्वीकार नहीं करती है, और चीन की सरकार महामारी से नहीं जूझ रही है ऐसे में आप नीति में मूलभूत परिवर्तन देखने की उम्मीद नहीं कर सकते”
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