एक वक्त था जब हर कोई संयुक्त परिवार में रहना चाहता था. परिवार का हर सदस्य एक दूसरे के सुख दुख का साथी होता था. मुश्किल वक्त में परिवार एक दूसरे की ताकत बनता था लेकिन धीरे धीरे वो वक्त जाता रहा. रोज़ी रोटी के लिए बच्चे घर से बाहर आने लगे और फिर एक नए शहर में अकेले ही अपनी जिंदगी बसर करने लगे. लेकिन आज के ऐसे दौर में भी कुछ परिवार ऐसे हैं जो मिसाल पेश करते हैं पीढ़ियाँ बीत गई लेकिन न परिवार जुदा हुआ न टूटा बल्कि एक साथ रहकर पत्थर से पहाड़ जैसा मजबूत और विशाल बन गया.
आज के दौर में एक परिवार ऐसा भी है जिसमें एक साथ 72 सदस्य रहते हैं. दादी-दादा, चाची-चाचा, बच्चे सब एक साथ एक घर में रहते हैं. सोलापुर में रहने वाले इस परिवार में 1 दिन में 1200 रुपये तक की सब्जियां लग जाती हैं, 10 लीटर दूध की खपत है, तो वहीं खाना बनाने के लिए छह से सात चूल्हों को एक साथ जलना पड़ता है.
एक साथ रहता 72 लोगों का परिवार है मिसाल
मूल रूप से कर्नाटक का रहने वाला दो ही जोड़े परिवार 100 साल पहले सोलापुर में आकर बसा था धीरे धीरे संख्या बढ़ती रही और यह परिवार की चार पीढ़ियां एक साथ रह रही हैं. और आज इस परिवार में 72 सदस्य हैं और वो सभी एक साथ 1 ही घर में रहते हैं. परिवार बहुत बड़ा है लिहाज़ा राशन पानी की खपत भी उसी लिहाज से होती है. परिवार के कुछ सदस्यों के मुताबिक यहां 1 दिन में 10 लीटर से ज्यादा दूध खर्च हो जाता है तो वहीं 1000 से ₹1200 तक की तो सब्जियां ही आ जाती है और जब खाना बनाने की बारी आती है तो एक ही किचन में छह से सात चूल्हों को जलना पड़ता है, तब जाकर तैयार हो पाता है परिवार के एक वक्त का खाना. लेकिन इतना सब कुछ संभालना उन बहुओं के लिए आसान नहीं था जो दूसरे घर से ब्याह कर नयी नयी इस परिवार का हिस्सा बनी थी.
दूसरे घर से आकर भी बहुओं ने बखूबी संभाली दोईजोडे परिवार की ज़िम्मेदारी
दोईजोडे परिवार कई तरीके का व्यापार करता है टोपियाँ, कंबल, और भी कई दुकानें हैं इनकी. जो बेटे बेटियां इसी परिवार में पैदा हुए और पले बढ़े उनके लिए ये बड़ा परिवार में खुशियों की चाबी है. वो बचपन से यहीं रहे, लिहाजा उनके लिए सबकुछ हमेशा से सहज ही रहा. लेकिन समस्या उन महिलाओं के सामने उठ खड़ी हुई जो दूसरे घर से प्यार कर इस घर का हिस्सा बनीं. क्योंकि इतने बड़े परिवार को संभालना और जिम्मेदारी लेना किसी के लिए भी बड़ी चुनौती है. अब इतना बड़ा परिवार होता ही कहां है. लेकिन परिवार की बहुएं बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें काफी वक्त लगा यहां ढलने में. लेकिन सास, दादी और ननदों ने मिलकर ऐसी मदद की कि सब कुछ जल्दी ही सहज हो गया.
BBC मराठी की रिपोर्ट में दिखे परिवार की इस सबसे अच्छी बात यह है कि परिवार इतना बड़ा है कि यहां के बच्चों को खेलने कूदने या पढ़ाई लिखाई के लिए कभी किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ा. एक दूसरे के साथ ही साथ ही इनकी सारी मौज मस्ती हो जाया करती हैं. सोशल मीडिया पर शेयर इस परिवार की तस्वीरें किसी कौतूहल से कम नहीं इतनी बड़ी परिवार का आज भी एक साथ होना लोगों के लिए अचरज की बात है.
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FIRST PUBLISHED : November 16, 2022, 17:10 IST