ये है दुनिया का सबसे विकसित मुस्लिम देश, यहां बिन ब्याही लड़की भी बन सकती है मां!


इस्लाम का नाम आते ही एक आम भारतीय के सामने पड़ोसी देश पाकिस्तान का चेहरा दिखने लगता है. ऐसा होना लाजिमी भी है. मजहब के नाम पर बने इस देश ने बीते 70 सालों में मानवता को गहरे घाव के अलावा कुछ और नहीं दिया है. लेकिन, हम पाकिस्तान की बात नहीं कर रहे हैं. दुनिया में इस्लाम की बात कर रहे हैं. इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है. दुनिया में इस्लाम को मानने वाले करीब 1.8 अरब लोग हैं. यानी दुनिया की कुल आबादी में करीब 24 फीसदी लोग इस्लाम को मानते हैं. इनकी दुनिया बहुत बड़ी है. आप केवल पाकिस्तान के नाम पर इस धर्म को लेकर अपना नजरिया मत बनाइए. दुनिया में 26 इस्लामिक देश हैं जो एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व तक फैले हुए हैं.

इसमें कई ऐसे देश हैं जो काफी लिबरल माने जाते हैं. ये देश दुनिया की अर्थव्यवस्था के केंद्र बने हुए हैं. यहां पर कहने को तो आधिकारिक धर्म इस्लाम है लेकिन अन्य धर्मों को मानने वाले के साथ भी बराबरी का व्यवहार किया जाता है. उन्हें अपने मजहब को मानने और अपने हिसाब से जीने की पूरी आजादी है. आज हम बात कर रहे हैं भारत के बेहद करीबी एक इस्लामिक देश की. यहां पर पिछले दिनों एक कानून बनाया गया है जिसके बाद इस देश की चर्चा और होने लगी है. इस कानून में यहां रह रहे विदेशी लोगों को और अधिक धार्मिक आजादी और उनके हिसाब से जीने की स्वतंत्रता दी गई है. आप इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि यहां पर बिन ब्याही लड़की को भी मां बनने की इजाजत दे दी गई है.

दरअसल, हम बात करे हैं संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की. इसने हाल ही में अपने यहां रह रहे गैर-मुस्लिम लोगों के लिए ‘फेडरल पर्सनल स्टेटस लॉ’ बनाया है. इस लॉ की दुनिया भर में चर्चा ही रही है. इस लॉ को इतना उदार कर दिया गया है कि आप यूरोप के किसी देश से इसकी तुलना कर सकते हैं. इसमें यूएई में रह रहे गैर मुस्लिम लोगों की शादी, तलाक, बच्चे की कस्टडी, संपत्ति पर अधिकार, विल आदि को लेकर बेहद उदार नजरिया अपनाया गया है.

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अपनी उदार नीति के कारण ही दुबई दुनिया के मानचित्र पर सबसे प्रमुख बिजनेस सिटी बन कर उभरा है. लेकिन यह केवल अपने इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण नहीं, बल्कि ऐसा तमाम अन्य नीतियों के कारण हुआ है. यह नया निमय 1 फरवरी 2023 से प्रभावी होने जा रहा है. इस सुधार को 27 नवंबर 2021 को मंजूरी दी गई थी. उस वक्त यहां के शेख दिवंगत बिन जायेद अल नहयान थे, जिन्होंने करीब 40 कानूनों में बदलाव किया था. इसे अरब देशों के इतिहास में एक सबसे बड़ा सुधार करार दिया गया है.

इस सुधारों की जरूरत क्यों पड़ी?
दरअसल, यूएई में बड़ी संख्या में बाहरी लोग रहते हैं. इनमें एक बड़ी आबादी गैर मुस्लिम लोगों की है. इस सुधार की शुरुआत अबूधाबी के फैमिली कोर्ट से हुई. इस कोर्ट ने एक गैर मुस्लिम दंपति को शरिया कानून के बगैर ही तलाक या शादी करने की अनुमति दे दी. ब्रिटेन और यूरोप के कई देशों में गैर ईसाई लोगों के लिए शादी के ऐसे ही कानून हैं. इस कानून को अब यूएई के सभी सात अमीरातों में लागू किया जा रहा है. इस कानून को लागू किए जाने से पहले यूएई में रहने वाले गैर मुस्लिम लोगों को भी शरीयत के कानून का पालन करना पड़ता था.

शादी और तलाक को लेकर नया प्रावधान
इस कानून को एक क्रांतिकारी बदलाव कहा जा रहा है. इसके मुताबिक अब यूएई में रहने वाली कोई गैर मुस्लिम लड़की 21 साली उम्र में अपने पिता या परिवार की मर्जी के बगैर अपने पसंद से शादी कर सकती है. पहले इस तरह की शादी में कई रोड़े थे. कई पुरुषों को गवाह बनाना पड़ता था. अब केवल होने वाले पति और पत्नी की इच्छा ही मायने रखती है. अगर दोनों चाहें तो वे शादी कर सकते हैं. इसी तरह तलाक की प्रक्रिया को भी आसान बनाया गया है. अब कोई गैर-मुस्लिम दंपति आपसी सहमति से या फिर इनमें से कोई एक भी तलाक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है. पहले तलाक के लिए आवेदक को यह साबित करना पड़ता था कि उसके साथी ने शादी के दौरान उसको नुकसान पहुंचाया है.

पिता बताने की जरूरत नहीं
आप इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि इन कानूनों को कितना उदार बनाया गया है. पहले यूएई में किसी बच्चे की बर्थ सर्टिफिकेट के लिए शादी-शुदा होना या फिर मां और बाप की तरह से एफडेविट देना होता था. लेकिन इसके नियम बेहद आसान कर दिए गए हैं. एक बिन ब्याही मां, जो बच्चे का पिता नाम नहीं बताना चाहती, वो भी होने वाले बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन कर सकती है.

संपत्ति और अन्य चीजें
इसी तरह संपत्ति पर अधिकार और अन्य चीजों को लेकर भी नियम बेहद आसान कर दिए गए हैं. तलाक की स्थिति में बच्चों को ज्वाइंट कस्टडी दी जा सकती है, जो पहले केवल मां के पास होता था. इसी तरह गैर-मुस्लिम लोगों की संपत्ति पर अधिकार के नियम भी बेहद सरल कर दिए गए हैं.

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