क्वॉडः एक चीन विरोधी संगठन या भू-राजनीति को बदलने का केंद्र


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ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में क्वॉड देशों की बैठक


नई
दिल्ली,
11
फरवरी।

अमेरिका,
ऑस्ट्रेलिया,
जापान
और
भारत
का
2006
में
बना
संगठन
क्वॉड
यानी
क्वॉड्रिलेटरल
सिक्यॉरिटी
डायलॉग
जब
2017
में
अचानक
फिर
से
सक्रिय
हो
गया,
तो
चीन
के
विदेश
मंत्री
वांग
यी
ने
इसका
मजाक
उड़ाते
हुए
कहा
था
कि
यह
“सुर्खियां
बटोरने
का
तरीका
है
जो
समुद्र
की
झाग
की
तरह
गायब
हो
जाएगा.”

बीते
चार
साल
में
प्रशांत
महासागर
की
लहरों
से
जाने
कितना
झाग
गायब
हो
चुका
है
लेकिन
क्वॉड
ना
सिर्फ
मजबूती
से
खड़ा
है
बल्कि
हाल
के
सालों
में
सबसे
ज्यादा
तेजी
से
उभरने
वाला
संगठन
बन
गया
है.
दक्षिण-पूर्व
एशिया
के
जिन
देशों
ने
इस
संगठन
को
लेकर
पहले
असहजता
दिखाई
थी,
मेलबर्न
में
क्वॉड
के
विदेश
मंत्रियों
की
सालाना
बैठक
में
उन्हें
इस
संगठन
से
जोड़ने
पर
भी
बात
हुई.

चीन
और
ऑस्ट्रेलिया
के
बीच
तनाव
और
हथियारों
की
होड़
का
नया
दौर

पिछले
एक
साल
में
इस
संगठन
के
नेता
कई
बार
मिल
चुके
हैं,
जिसमें
से
दो
बार
तो
आमने-सामने
मुलाकात
हुई
है.
पहले
पिछले
साल
चारों
देशों
के
राष्ट्राध्यक्षों
ने
अमेरिका
में
बैठक
की
थी
और
अब
चारों
विदेश
मंत्री
ऑस्ट्रेलिया
के
मेलबर्न
में
मिले,
जो
इस
संगठन
की
लगातार
बढ़ती
अहमियत
का
एक
और
संकेत
था.

भारत
के
थिंक
टैंक
दिल्ली
पॉलिसी
ग्रुप
में
बतौर
रिसर्च
एसोसिएट
काम
कर
रहीं
डॉ.
आंगना
गुहा
रॉय
कहती
हैं
कि
क्वॉड
दुनियाभर
के
लिए
अच्छा
है.
डीडब्ल्यू
से
बातचीत
में
उन्होंने
कहा,
“क्वॉड
ग्लोबल
गुड
के
लिए
अच्छा
है.
इसका
उद्देश्य
संरचनात्मक
है,
सकारात्मक
है,
जो
क्लाइमेट
चेंज,
वैक्सीन
और
तकनीक
जैसे
समकालीन
मुद्दों
से
जुड़ा
है.”


क्वॉड
नेताओं
की
मेलबर्न
बैठक

शुक्रवार
को
मेलबर्न
में
जब
में
अमेरिका
के
विदेश
मंत्री
एंटनी
ब्लिंकेन,
जापान
के
योशीमासा
हयाशी,
ऑस्ट्रेलिया
की
मरीस
पाएन
और
भारत
के
डॉ.
एस.
जयशंकर
मिले
तो
इन्ही
सब
मुद्दों
पर
चर्चा
हुई.
चारों
देशों
ने
साइबर
सुरक्षा
को
गंभीरता
से
लेने
और
हिंद-प्रशांत
क्षेत्र
में
आपदाओं
के
प्रबंधन
वह
बचाव
कार्यों
में
सहयोग
बढ़ाने
जैसे
मुद्दों
पर
बात
की.

ऑस्ट्रेलिया
की
विदेश
मंत्री
मरीस
पाएन
ने
पत्रकारों
से
बातचीत
में
बताया,
“हमने
हिंद-प्रशांत
क्षेत्र
के
सहयोगियों
के
लिए
जल-सुरक्षा
में
सहयोग
बढ़ाने
और
मछलियों
का
अवैध
शिकार
रोकने
जैसे
मुद्दों
पर
चर्चा
की.”
मरीस
पाएन
ने
कहा
कि
कोविड
महामारी
के
खिलाफ
संगठन
का
सहयोग
‘सबसे
महत्वपूर्ण
रहा.’

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन

लेकिन
इन
सब
मुद्दों
के
बीच
में
उन
विषयों
पर
भी
चर्चा
हुई
जिन्हें
लेकर
चीन
और
रूस
जैसे
देश
इस
संगठन
से
नाखुश
हैं.
चारों
देशों
के
बीच
‘दादागीरी-मुक्त
क्षेत्र’
बनाने
के
लिए
मिलकर
काम
करने
पर
सहमति
बनी.
इसे
चीन
का
नाम
लिए
बिना
चीन
पर
की
गई
टिप्पणी
माना
जा
रहा
है.

हालांकि
पत्रकारों
ने
जब
चीन
पर
सवाल
किया
तो
अमेरिकी
विदेश
मंत्री
ने
सीधी
टिप्पणी
करने
से
भी
परहेज
नहीं
किया.
जब
एक
पत्रकार
ने
पूछा
कि
क्या
भविष्य
में
चीन
के
साथ
संघर्ष
अपरिहार्य
है,
तो
ब्लिंकेन
ने
कहा,
“कुछ
भी
अपरिहार्य
नहीं
है.”

उन्होंने
कहा,
“हम
सबकी
यह
चिंता
साझी
है
कि
हाल
के
सालों
में
चीन
अपने
घरेलू
और
क्षेत्रीय
मामलों
में
भी
ज्यादा
आक्रामक
हो
गया
है.”


यूक्रेन
पर
भी
हुई
चर्चा

हालांकि
यूक्रेन
संकट
और
रूस
का
पश्चिमी
देशों
के
साथ
बढ़ता
तनाव
संगठन
के
दायरे
में
शामिल
नहीं
है
लेकिन
मेलबर्न
की
बैठक
इससे
अछूती
नहीं
रही.
अमेरिकी
विदेश
मंत्री
एंटनी
ब्लिंकेन
ने
कहा
कि
रूस
का
यूक्रेन
सीमा
पर
सैन्य
जमावड़ा
अंतरराष्ट्रीय
कानून-सम्मत
व्यवस्था
के
लिए
चुनौती
है,
और
क्वॉड
इस
व्यवस्था
को
बचाए
रखने
के
लिए
काम
करेगा.

ब्लिंकेन
ने
कहा,
“इसमें
सभी
देशों
को
अपना
रास्ता
चुनने
की
आजादी,
दबाव
से
मुक्ति
और
अपनी
क्षेत्रीय
अखंडता

संप्रभुता
का
सम्मान
शामिल
हैं.
यह
चाहे
यहां
हिंद-प्रशांत
में
हो,
यूरोप
में
या
फिर
दुनिया
में
कहीं
भी.”

भारतीय
विदेश
मंत्री
डॉ.
एस
जयशंकर
ने
कहा
कि
पिछली
बार
जब
क्वॉड
विदेश
मंत्रियों
की
बैठक
हुई
थी,
तब
से
दुनिया
के
भू-राजनीतिक
और
भू-आर्थिक
हालात
और
ज्यादा
जटिल
हो
चुके
हैं.
उन्होंने
कहा,
“बड़े
लोकतंत्र
के
नाते
हम
मिलकर
अपनी
साझी
सोच
पर
आगे
बढ़ना
चाहते
हैं,
जो
एक
नियम-आधारित
अंतरराष्ट्रीय
व्यवस्था
चाहती
है,
जिसमें
दादागीरी
की
कोई
जगह
नहीं
है.
यह
व्यवस्था
क्षेत्रीय
सीमाओं
और
संप्रभुताओं
के
सम्मान,
कानून-सम्मत
राज,
पारदर्शिता,
अंतराष्ट्रीय
समुद्र
में
आने-जाने
की
आजादी
और
(विवादों
के)
शांतिपूर्ण
हल
पर
आधारित
है.”


क्या
क्वॉड
चीन
विरोधी
है?

क्वॉड
को
कहा
तो
जाता
है
कि
यह
हिंद-प्रशांत
क्षेत्र
में
रणनीतिक
और
आर्थिक
सहयोग
के
लिए
काम
करने
वाला
संगठन
है
लेकिन
अक्सर
इसे
चीन
की
काट
के
तौर
पर
ऐसी
शक्तियो
के
साथ
आने
के
रूप
में
देखा
जाता
है,
जिनका
चीन
से
36
का
आंकड़ा
है.

भारत
और
चीन
के
बीच
दशकों
पुराना
सीमा
विवाद
है.
जापान
और
चीन
ऐतिहासिक
रूप
से
एक
दूसरे
के
विरोधी
रहे
हैं.
अमेरिका
चीन
की
आक्रामक
आर्थिक
नीतियों
से
आजिज
रहता
है.
ऑस्ट्रेलिया
का
सबसे
बड़ा
व्यापारिक
साझीदार
चीन
है
लेकिन,
आजकल
उसके
साथ
संबंध
में
ऐतिहासिक
तनाव
है.

ऐसे
में
क्वॉड
को
चीन-विरोधी
संगठन
के
रूप
में
देखा
जाना
हैरतअंगेज
नहीं
है.
चीन
तो
क्वॉड
को
‘एशियाई
नाटो’
तक
कह
चुका
है.

क्वॉड के विदेश मंत्रियों के साथ ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन (मध्य)

डॉ.
गुहा
रॉय
कहती
हैं
कि
चूंकि
चीन
खुद
एक
दादागीरी
करने
वाला
देश
है
इसलिए
उसका
विरोध
उसके
चौकस
होने
का
संकेत
है.
डीडबल्यू
से
बातचीत
में
उन्होंने
कहा,
“भारत
यह
स्पष्ट
कर
चुका
है
कि
उसका
क्वॉड
के
सुरक्षा
एजेंडे
से
कोई
विरोध
नहीं
है
लेकिन
आधिकारिक
तौर
पर
हमारा
किसी
दूसरे
देश
के
खिलाफ
कोई
मकसद
नहीं
है.”

जानकार
मानते
हैं
कि
चीन
का
व्यवहार
दादागीरी
वाला
रहा
है,
जो
उत्तर-पूर्व
एशिया
से
आगे
भी
फैल
रहा
है.
डॉ
गुहा
ने
साफ
कहा,
“इसे
आप
दक्षिण
एशिया,
दक्षिण-पूर्व
एशिया
और
दुनिया
की
अन्य
जगहों
पर
भी
देख
सकते
हैं.
चूंकि
चीन
खुद
अपना
दबदबा
लगातार
बढ़ा
रहा
है
और
अन्य
देश
इसके
बारे
में
बोल
भी
रहे
हैं.”

डॉ
गुहा
ने
कोरिया
का
उदाहरण
देकर
बताया
कि
कैसे
यह
एशियाई
देश
जो
पहले
चीन
का
बड़ा
कारोबारी
साझीदार
था
अब
उसकी
नीतियों
के
चलते
हिंद
प्रशांत
क्षेत्र
की
अवधारणा
की
ओर
झुकाव
दिखा
रहा
है.
उन्होंने
कहा,

चीन
इस
बात
को
समझ
रहा
है
कि
बहुत
से
देश
उसकी
दादागीरी
से
खुश
नहीं
हैं.
तो
जब
ये
देश
साथ

रहे
हैं
और
ना
सिर्फ
अपने
विकास
से
जुड़े
मुद्दों
पर
बात
कर
रहे
हैं
बल्कि
अंतरराष्ट्रीय
सुरक्षा
पर
भी
बात
कर
रहे
हैं,
तो
चीन
का
चौकस
होना
लाजमी
है.”

ताइवान:
रक्षा
प्रणालियों
को
मजबूत
करने
के
लिए
अमेरिका
ने
समझौते
को
दी
मंजूरी

यही
वजह
है
कि
भू-राजनीतिक
विषयों
के
कई
विशेषज्ञ
क्वॉड
को
खासी
दिलचस्पी
से
देख
रहे
हैं.
ऑस्ट्रेलिया
के
थिंकटैंक
लोवी
इंस्टीट्यूट
की
पत्रिका

इंटरप्रेटर
के
लिए
लिखे
एक
लेख
में
थिंकटैंक
अनंत
ऐस्पन
सेंटर
की
सीईओ
और
पत्रकार
इंद्राणी
बागची
ने
लिखा
है,
“क्वॉड
वैश्विक
भू-राजनीति
के
नए
सीमांकन
का
केंद्र
है,
जो
इसे
सबसे
अलग
बनाता
है.
इसका
होना
ही
एक
वादा
करता
है
कि
21वीं
सदी
की
जरूरत
एक
ज्यादा
लोकतांत्रिक
विश्व
है.
यह
सिर्फ
चीन-विरोधी
संगठन
नहीं
है,
जैसा
कि
चीन
और
रूस
इसे
कहते
हैं,
बल्कि
यह
दिखाता
है
कि
नियमों
का
पालन
करते
हुए
किस
तरह
अंतरराष्ट्रीय
स्तर
पर
सहयोग
किया
जा
सकता
है.”


भारत
के
लिए
कितना
लाभकारी

अब
तक
भारत
की
नीति
किसी
भी
सैन्य
संगठन
के
साथ
ना
जुड़ने
की
रही
है.
इसी
वजह
से
वह
हाल
ही
में
ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका-यूके
के
बनाए
आकुस
से
भी
दूरी
बनाए
हुए
है.
लेकिन
अमेरिका
और
जापान
की
चीन
से
रणनीतिक
प्रतिद्वन्द्विता
जगजाहिर
है
और
दक्षिण-चीन
सागर
में
वे
लगातार
चीन
के
प्रति
आक्रामक
रहते
हैं.

ऐसे
में
इन
देशों
के
साथ
खड़ा
होना
भारत
के
लिए
कितना
लाभकारी
हो
सकता
है.
ऑस्ट्रेलिया
स्थित
नेशनल
सिक्योरिटी
कॉलेज
में
सीनियर
रिसर्च
फेलो
डॉ.
डेविड
ब्रूस्टर
कहते
हैं
कि
ऑस्ट्रेलिया
और
बाकी
क्वॉड
सदस्यों
से
दोस्ती
का
भारत
को
खूब
फायदा
होगा.

डीडब्ल्यू
से
बातचीत
में
डॉ.
ब्रूस्टर
ने
कहा,
“सबसे
पहली
बात
तो
यह
है
कि
अमेरिका,
जापान
और
ऑस्ट्रेलिया
भारत
को
उसके
पड़ोसियों
की
नौसैनिक
क्षमताएं
बढ़ाने
में
मदद
कर
सकते
हैं.
इससे
ये
देश
अपनी
समुद्री
सीमाओं
की
अंतरराष्ट्रीय
अपराध
और
अन्य
खतरों
से
बेहतर
सुरक्षा
कर
पाएंगे.
इसका
फायदा
पूरे
दक्षिण
एशिया
की
समुद्री
सुरक्षा
को
पहुंचेगा.”

डॉ
ब्रूस्टर
के
मुताबिक
जापान,
अमेरिका
और
ऑस्ट्रेलिया
जैसे
देशों
के
साथ
सहयोग
दक्षिण
एशियाई
देशों
को
ज्यादा
विकल्प
देगा,
और
उनके
रिश्ते
अपने
बड़े
पड़ोसी,
भारत
से
सुधरेंगे.
यह
निश्चित
तौर
पर
भारत
के
लिए
लाभकारी
होगा.

यूक्रेन
विवाद
के
बीच
रूस
के
समर्थन
में
आया
चीन

डॉ.
गुहा
रॉय
को
भी
इस
बात
में
संदेह
नहीं
है
कि
क्वॉड
की
सदस्यता
भारत
के
लिए
फायदे
का
सौदा
है.
लेकिन
वह
अभी
इस
इंतजार
में
हैं
कि
बातचीत
और
बयानबाजी
के
आगे
बढ़कर
यह
संगठन
कब
नतीजे
देना
शुरू
करेगा
और
वे
नतीजे
कैसे
होंगे.

वो
कहती
हैं,
“अब
तक
वे
बातचीत
के
दौर
में
हैं,
निर्माण
के
दौर
में
हैं.
हमें
अभी
यह
इंतजार
करना
है
कि
क्वॉड
से
हमें
कितने
सक्रिय,
रचनात्मक
और
सकारात्मक
नतीजे
मिलते
हैं.
लेकिन
यह
तय
है
कि
वैश्वीकरण
के
दौर
में
किसी
भी
तरह
की
बातचीत
अच्छी
होती
है.”

Source: DW

English summary

quad to strengthen cyber terrorism cooperation australias payne



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