इंदिरा गांधी थीं प्रधानमंत्री, मोरारजी थे डिप्‍टी पीएम… क्‍यों खास था 1968-69 का केंद्रीय बजट?


नई दिल्‍ली: यह तस्‍वीर 1968 की है। इसमें इंदिरा गांधी के साथ मोरारजी देसाई हैं। तब इंदिरा प्रधानमंत्री थीं और मोरारजी डिप्‍टी पीएम। मोरारजी पर वित्‍त मंत्रालय का अतिरिक्‍त प्रभार भी था। यानी वह वित्‍त मंत्री भी थे। उस साल 29 फरवरी को केंद्रीय बजट पेश होने से पहले की यह तस्‍वीर है। 1968-69 का बजट कई मायनों में खास था। इसी दिन मोरारजी देसाई का जन्‍मदिन भी था। देसाई इसके पहले 1964 में भी अपने जन्‍मदिन पर बजट पेश कर चुके थे। उनके नाम सबसे ज्‍यादा 10 बार बजट पेश करने का रिकॉर्ड दर्ज है। बजट 1968 को ‘आम लोगों का बजट’ करार दिया गया था। यह उन गिने-चुने बजटों में शुमार है जो अलग हटकर था। तब स्थितियां बहुत चुनौतीपूर्ण थीं। देश सूखे की मार से बिलबिला रहा था। खाद्य सामग्री की किल्‍लत थी। महंगाई से लोगों का हाल बेहाल था। मोरारजी ने इस बजट में ऐसे कई प्रावधान किए थे जिसने लोगों को राहत दी थी। एक फरवरी को जब बजट 2023 पेश होने वाला है तब वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी लोगों को कुछ ऐसी ही उम्‍मीद है। 2024 के आम चुनाव से पहले मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह अंतिम पूर्ण बजट होगा।

असेसमेंट न‍ियमों में क‍िया था बदलाव
1968 में मोरारजी देसाई ने एक्‍साइज डिपार्टमेंट की ओर से असेसमेंट के नियमों को बदला था। इसे लेकर मैन्‍यूफैक्‍चरर्स से काफी शिकायतें मिल रही थीं। उन्‍होंने सेल्‍फ असेसमेंट की व्‍यवस्‍था शुरू की थी। इसके जरिये मैन्‍यूफैक्‍चरर्स पर भरोसा जताया गया था।

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बजट 1968 में वित्‍त वर्ष के लिए देसाई ने 3,132 करोड़ रुपये की कमाई का अनुमान जताया था। एक्‍साइज ड्यूटी के कारण 86 करोड़ रुपये की संभावित बढ़ोतरी के आधार पर यह एस्टिमेट किया गया था। उन्होंने भरोसा जताया था कि सरकार रेवेन्‍यू रिसीप्‍ट के इस लक्ष्‍य को हासिल करेगी।

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‘स्‍पाउस अलाउंस’ क‍िया था खत्‍म
देसाई ने तब ‘स्‍पाउस अलाउंस’ को वापस लिया था। उन्‍होंने कहा था कि ऐसी स्थिति में जब पति और पत्‍नी दोनों टैक्‍सपेयर हैं तो यह उचित नहीं होगा कि कोई बाहरी तय करे कि कौन किस पर निर्भर है।

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देसाई बजट घाटे के पक्ष में नहीं रहते थे। हालांकि, उन्‍होंने अनुमान जताया था कि वित्‍त वर्ष 1968-69 के दौरान 300 करोड़ रुपये का राजस्‍व घाटा रह सकता है। राज्‍यों के 113 करोड़ रुपये के ओवरड्राफ्ट को उन्‍होंने इसका कारण बताया था।

तत्‍कालीन वित्‍त मंत्री ने शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेंस को गेंस के तौर क्‍लासिफाई करके लोगों को राहत दी थी। किसी कैपिटल एसेट को खरीदने के 24 महीने के भीतर उसे बेचने पर इस तरह के गेन को तब शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेंस कहते थे।



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