
सुप्रीम
कोर्ट
ने
सीईसी
और
चुनाव
आयुक्तों
की
नियुक्ति
प्रक्रिया
बदली
2
मार्च,2023
को
एक
महत्वपूर्ण
आदेश
में
सुप्रीम
कोर्ट
की
पांच
सदस्यीय
संविधान
पीठ
ने
सर्वसम्मति
से
देश
के
मुख्य
चुनाव
आयुक्त
(CEC)
और
चुनाव
आयुक्तों
(EC)
की
नियुक्तियों
के
लिए
उच्च-स्तरीय
समिति
गठित
करने
का
फैसला
सुनाया
है।
इस
आदेश
के
मुताबिक
इन
पदों
पर
नियुक्ति
करने
वाली
समिति
में
प्रधानमंत्री
(PM),लोकसभा
में
विपक्ष
के
नेता
(LoP)
और
चीफ
जस्टिस
ऑफ
इंडिया
(CJI)
शामिल
होंगे।
यह
बहुत
बड़ा
फैसला
है,
जिसका
भारत
की
चुनाव
प्रणाली
पर
बहुत
ही
दूरगामी
असर
पड़ने
की
संभावना
है।
अभी
तक
इन
नियुक्तियों
में
पूरी
तरह
से
केंद्र
सरकार
का
रोल
रहता
आया
है।
यह
फैसला
सुनाने
वाली
संविधान
पीठ
की
अगुवाई
जस्टिस
केएम
जोसेफ
ने
की
है।
उनके
अलावा
इस
बेंच
में
जस्टिस
अजय
रस्तोगी,
जस्टिस
अनिरुद्ध
बोस,
जस्टिस
हृशिकेश
रॉय
और
जस्टिस
सीटी
रविकुमार
भी
शामिल
हैं।
हालांकि,
जस्टिस
रस्तोगी
ने
बहुमत
की
राय
से
तो
सहमति
जताई
है,
लेकिन
अपनी
अलग
से
भी
राय
रखी
है।
आदेश
की
पूरी
कॉपी
का
इंतजार
है।

सुप्रीम
कोर्ट
में
क्या
याचिका
डाली
गई
थी
?
सुप्रीम
कोर्ट
में
सीईसी
और
चुनाव
आयुक्तों
की
नियुक्तियों
के
लिए
कानून
बनाने
को
लेकर
जनहित
याचिकाएं
डाली
गईं
थी।
पहली
पीआईएल
2015
में
और
दूसरी
2018
में
बीजेपी
नेता
और
वकील
अश्विनी
उपाध्याय
की
ओर
से
डाली
गई
थी,
जिसे
संवैधानिक
बेंच
को
सुनवाई
के
लिए
सौंपा
गया
था।
सुप्रीम
कोर्ट
ने
पिछले
साल
नवंबर
में
इसपर
सुनवाई
की
थी।
सुनवाई
के
आखिरी
दिन
अदालत
ने
अरुण
गोयल
की
नियुक्ति
चुनाव
आयुक्त
के
पद
पर
किए
जाने
के
लिए
दिखाई
गई
‘जल्दबाजी’
पर
हैरानी
जताई
थी।
18
नवंबर
को
हुई
इस
नियुक्ति
में
24
घंटे
से
भी
कम
लगे
थे।
याचिकाओं
में
चुनाव
आयोग
से
संबंधित
सर्वोच्च
पदों
पर
नियुक्तियों
के
लिए
सीबीआई
के
डायरेक्टर
वाली
नियुक्ति
प्रक्रिया
अपनाने
की
मांग
की
गई
थी।

सीईसी
और
चुनाव
आयुक्तों
की
नियुक्ति
अभी
कैसे
होती
है
?
भारतीय
संविधान
के
15वें
खंड
में
आर्टिकल
324
से
लेकर
329
तक
चुनाव
आयोग
का
जिक्र
है।
आर्टिकल-324
कहता
है
कि
‘चुनावों
का
अधीक्षण,
निर्देशन
और
नियंत्रण’
एक
चुनाव
आयोग
के
पास
होगा,
जो
‘मुख्य
चुनाव
आयुक्त
और
अन्य
चुनाव
आयुक्तों
से
गठित
होगा,
जो
राष्ट्रपति
के
द्वारा
समय-समय
पर
तय
किया
जाएगा…’
संविधान
में
मुख्य
चुनाव
आयुक्तों
और
चुनाव
आयुक्तों
की
नियुक्तियों
के
लिए
किसी
विशेष
प्रक्रिया
का
प्रावधान
नहीं
किया
गया
है।
राष्ट्रपति
यह
नियुक्ति
प्रधानमंत्री
की
अगुवाई
वाली
केंद्रीय
मंत्रिपरिषद
की
सिफारिश
पर
करते
हैं।

चुनाव
आयोग
के
पास
क्या
अधिकार
हैं
?
संविधान
में
चुनावों
से
संबंधित
चुनाव
आयोग
को
बहुत
ज्यादा
शक्तियां
दी
गई
हैं।
15
जून,
1949
को
संविधान
सभा
में
डॉक्टर
भीमराव
अंबेडकर
ने
कहा
था,
‘पूरी
चुनावी
मशीनरी
एक
केंद्रीय
चुनाव
आयोग
के
हाथों
में
होनी
चाहिए,
जो
अकेले
रिटर्निंग
ऑफिसरों,
पोलिंग
ऑफिसरों
और
अन्यों
को
दिशानिर्देश
जारी
करने
का
अधिकार
रखेगा।’
इसके
बाद
संसद
से
जनप्रतिनिधित्व
कानून
1950
और
जनप्रतिनिधित्व
कानून
1951
पास
करके
चुनाव
आयोग
की
शक्तियां
परिभाषित
की
गईं।

क्या
चुनाव
आयोग
में
हमेशा
से
तीन
मेंबर
होते
हैं
?
पहले
आम
चुनाव
के
बाद
से
लेकर
करीब
चार
दशकों
यानि
1989
तक
चुनाव
आयोग
एक
सदस्यीय
(मुख्य
चुनाव
आयुक्त)
ही
रहा।
नौवीं
लोकसभा
के
चुनावों
से
ठीक
पहले
चुनाव
आयोग
का
विस्तार
किया
गया।
इसकी
वजह
तत्कालीन
राजीव
गांधी
सरकार
और
सीईसी
आरवीएस
पेरी
शास्त्री
के
बीच
पैदा
हुआ
विवाद
था।
दरअसल,
1987
में
राष्ट्रपति
चुनाव
के
दौरान
सरकार
और
चुनाव
आयोग
के
बीच
टकराव
की
स्थिति
पैदा
हो
गई
थी।
तब
केंद्र
सरकार
ने
सीईसी
के
पर
कतरने
के
लिए
चुनाव
आयोग
को
बहुसदस्यीय
बनाने
का
फैसला
किया।
इसी
के
बाद
तत्कालीन
राष्ट्रपति
आर
वेंकटरमण
ने
आर्टिकल-324
(2)
के
तहत
अपनी
शक्तियों
का
इस्तेमाल
करते
हुए
सीईसी
के
अलावा
चुनाव
आयोग
में
दो
और
चुनाव
आयुक्तों
का
पद
बना
दिया।
16
अक्टूबर,
1989
को
सरकार
ने
दो
चुनाव
आयुक्तों
की
नियुक्ति
कर
दी।
ऐसा
करने
के
बाद
भी
राजीव
सरकार
चुनावों
में
बुरी
तरह
हार
गई।
फिर
वीपी
सिंह
की
सरकार
ने
पिछली
सरकार
का
फैसला
रद्द
कर
दिया।
राजीव
सरकार
की
ओर
से
नियुक्त
एक
चुनाव
आयुक्त
एसएस
धनोआ
सुप्रीम
कोर्ट
भागे,
लेकिन
उनकी
याचिका
रद्द
कर
दी
गई।
इसे
भी
पढ़ें-
Nagaland
result
2023:
कौन
हैं
Hekani
Jakhalu?
राज्य
की
पहली
महिला
MLA
के
बारे
में
जानिए
Recommended
Video
Supreme
Court
का
बड़ा
फैसला,
CBI
चीफ
की
तरह
हो
CEC
और
चुनाव
आयुक्त
का
चयन
|
वनइंडिया
हिंदी

मौजूदा
व्यवस्था
कब
शुरू
हुई
?
12
दिसंबर,
1990
को
टीएन
शेषन
मुख्य
चुनाव
आयुक्त
नियुक्त
हुए।
उनके
आने
के
बाद
देश
की
जनता
ने
महसूस
किया
कि
चुनाव
आयोग
एक
स्वतंत्र
निकाय
है।
आगे
आकर
शेषन
के
कार्य
करने
के
तरीके
से
सरकार
में
खलबली
महसूस
होने
लगी।
1
अक्टूबर,
1993
को
तत्कालीन
कांग्रेस
सरकार
ने
फिर
से
चुनाव
आयोग
का
विस्तार
कर
दिया।
पीवी
नरसिम्हा
राव
सरकार
ने
टीएन
शेषन
के
साथ-साथ
एमएस
गिल
और
जीवीजी
कृष्णमूर्ति
को
भी
बतौर
चुनाव
आयुक्त
बिठा
दिया।
उस
सरकार
ने
एक
अध्यादेश
लाकर
ईसी
ऐक्ट
में
संशोधन
कर
दिया
और
सीईसी
और
दोनों
चुनाव
आयुक्तों
के
पद
को
समकक्ष
बना
दिया
और
तीनों
को
सुप्रीम
कोर्ट
के
जज
के
पद
के
बराबर
का
दर्जा
दे
दिया।
रिटायरमेंट
की
उम्र
भी
बढ़ाकर
65
साल
कर
दी
गई।
यानि
अभी
तीनों
चुनाव
आयुक्त
आम
सहमति
से
फैसले
लेते
हैं,
लेकिन
अगर
किसी
तरह
से
मत
भिन्नता
की
स्थिति
पैदा
हुई,
तो
बहुमत
के
नजरिए
का
पालन
किया
जाता
है।
टीएन
शेषन
भी
सरकार
के
इस
फैसले
के
खिलाफ
सुप्रीम
कोर्ट
पहुंचे
थे,
लेकिन
तब
के
सीजेआई
जस्टिस
एएम
अहमदी
की
अगुवाई
वाली
बेंच
ने
1995
में
उनकी
याचिका
भी
खारिज
कर
दी
थी।