Explainer : सोशल मीडिया, इन्क्यूबेटर और क्राउड फंडिंग… ढेरों तरीकों से जुटा सकते हैं स्टार्टअप के लिए पैसा


नई दिल्ली : स्टार्टअप सीरीज में पिछले हफ्ते हमने अपने खुद के पैसे लगाने (बूट स्ट्रैपिंग), दोस्तों और रिश्तेदारों से और सरकारी योजनाओं से पैसा जुटाने के बारे में बताया था। इस बार फंड जुटाने के बाकी तरीकों जैसे एंजल इन्वेस्टर, इनक्यूबेटर और एक्सेलेरेटर, पीयर-टु-पीयर लेंडिंग, वेंचर कैपिटल आदि के बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती। स्टार्टअप को फंडिंग देने के लिए वैसे तो कई सरकारी योजनाएं हैं, लेकिन इनसे अलग और भी कई तरीके हैं जिनकी मदद से स्टार्टअप में फंडिंग पाई जा सकती है। यह फंडिंग स्टार्टअप शुरू करने से लेकर स्टार्टअप के विस्तार तक में इस्तेमाल की जा सकती है। हालांकि, फंडिंग पाना उतना भी आसान नहीं होता। इन्वेस्टर रकम देने से पहले स्टार्टअप के बारे में सारी जानकारी लेते हैं। अगर इन्वेस्टर को लगता है कि आपके स्टार्टअप की प्लानिंग गलत है या यह भविष्य में अच्छा नहीं कर पाएगा, तो वह रकम इन्वेस्ट करने से मना भी कर सकता है।

इन्हें ऐसे मिली फंडिंग

1. सोशल मीडिया आया काम
सेनेका (Seneca) के सीईओ निशांत मित्तल का प्लान ऐसा स्मार्टफोन बनाने का है जिसमें सोशल मीडिया और विडियो गेम वाला ऐप इंस्टॉल नहीं होगा। इनमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब आदि शामिल हैं। निशांत ने बताया कि इन ऐप को ऐंड्रॉइड जैसे किसी दूसरे ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) से भी डाउनलोड नहीं कर पाएंगे क्योंकि इस फोन में अलग ओएस होगा। इस ओएस पर सोशल मीडिया और गेम्स के ऐप को छोड़कर वे सभी ऐप डाउनलोड हो सकेंगे जो ऐंड्रॉइड पर मौजूद हैं। इस फोन को बनाने का मकसद है कि JEE, CAT, UPSC, इत्यादि महत्वपूर्ण परीक्षाओं के लिए पढ़ रहे विद्यार्थी सोशल मीडिया की वजह से प्रभावित न हों।

निशांत ने बताया कि उन्होंने अपने स्टार्टअप की फंडिंग के लिए अनूठा तरीका अपनाया। निशांत ने वेंचर कैपिटलिस्ट्स (VCs) के लिए एक ओपन पिच (एक तरह का लैटर जिसमें स्टार्टअप के बारे में बताया गया है) तैयार किया और उसे LinkedIn पर पोस्ट कर दिया। निशांत ने अपने इस स्टार्टअप के लिए 40 करोड़ रुपये फंड जुटाने की बात कही। निशांत ने बताया कि यह ओपन पिच वायरल हो गई और कई इन्वेस्टर के पास पहुंच गई। अभी तक कई इन्वेस्टर ऐसे मिल गए हैं जिन्होंने कुछ रकम इन्वेस्ट करने का वादा किया है। ओपन पिच में निशांत ने लिखा कि लोगों की समस्या क्या है और इसमें उन्होंने उसका समाधान भी बताया। साथ ही उन्होंने अपने पुराने स्टार्टअप का भी जिक्र किया।

2. इन्क्यूबेटर से मिली मदद
ModCave के को-फाउंडर और सीओओ अल्फाज़ ए. हिराणी का स्टार्टअप कंस्ट्रक्शन साइट जसी जगह पर शेल्टर बनाने से जुड़ा है। अल्ताज़ ने बताया कि कोरोना में उन्हें अपने स्टार्टअप का आइिडया आया और उस पर अपने दूसरे साथियों के साथ काम शुरू कर दिया। साल 2021 में उन्होंेने अपनी कंपनी रजिस्टर की।

अल्फाज़ ने बताया कि साल 2021 में हमारे पास सिर्फ आइडिया था। एक स्ट्रक्चर को बनाने में 2 से 5 लाख रुपये का खर्च आता है। हमारे पास इतनी रकम नहीं थी। हमने कॉलेज के स्टार्टअप से जुड़ी कुछ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। वहां से हमें कोई फंड नहीं मिला क्योंकि हमारे स्टार्टअप का न तो रेवेन्यू था और न ही कोई प्रोफिट। यही नहीं, कोई प्रूफ ऑफ कन्सेप्ट भी नहीं था। करीब 100 इनक्यूबेटर तक पहुंचे लेकिन कोई ऑफर नहीं मिला। पढ़ाई के साथ जॉब भी की और उससे जो कमाई हुई, उसे अपने स्टार्टअप में लगाया। बाद दोस्तों और परिवार के सदस्यों से करीब 1.25 लाख रुपये जुटाए। इससे हमने अपने प्रोडक्ट का एक मॉडल यानी प्रूफ ऑफ कन्सेप्ट बनाया। हमने औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (DPIIT) में भी अपना स्टार्टअप रजिस्टर कराया था। स्टार्टअप इंडिया की मदद से हमें इनक्यूबेटर मिला। वहां से हमें 20 लाख रुपये की फंडिंग मिली। अभी स्टार्टअप बेहतर काम कर रहा है।

किसी भी स्टार्टअप में इतनी तरह के इन्वेस्टर लगाते हैं अपना पैसा

1. इनक्यूबेटर
इनक्यूबेटर वे होते हैं जो किसी भी स्टार्टअप को आइडिया लेवल से प्रॉडक्ट/सर्विस लेवल तक लाने में मदद करते हैं। इनकी जरूरत तब पड़ती है जब आपके पास दमदार आइडिया है लेकिन उसे मार्केट में कैसे लाया जाए, इस बारे में बहुत कुछ नहीं पता। इस दौरान ये स्टार्टअप को न केवल एक्सपर्ट सलाह देते हैं बल्कि पूरे आइडिया को फाइन ट्यून करने का काम भी करते हैं। पूरी प्रक्रिया में एक साल तक का समय लग सकता है। स्टार्टअप को यहां तक लाने में ये बैंक या सरकारी योजनाओं से लोन दिलाने का भी इंतजाम करते हैं।

इनक्यूबेटर के मुख्य काम:
– बिजनेस में मदद करना। मिसाल के तौर पर कई तरह की बिजनेस प्रैक्टिस और स्ट्रेटजी पर काम करना सिखाया जाता है।
– बिजनेस नेटवर्किंग के बारे में बताया जाता है जिससे आगे जाकर दूसरे सेक्टरों या अपने ही सेक्टर से मदद मिल सके।
– अकाउंट और फाइनैंशल मैनेजमेंट में मदद करना भी सिखाया जाता है।
– बैंक लोन आदि के लिए गारंटी प्रोग्राम जिनमें बताया जाता है कि बैंक लोन लेने का तरीका क्या है और बड़े लोन पर गारंटी की व्यवस्था कैसे होगी।
– प्रेजंटेशन स्किल में इजाफे के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जाते हैं। इसका कारण अपने आइडिया को आगे बेहतर तरीके से पेशकर पाने की क्षमता विकसित करना होता है।
– इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी मैनेजमेंट के बारे में बताया जाता है जिससे कोई भी उस बिजनेस आइडिया को चोरी न कर सके और अगर हमारा आइडिया किसी पहले से मौजूद आइडिया से मिलता-जुलता है तो कैसे उनके साथ कानूनी पचड़ों से बचा जाए।
-कुछ इनक्यूबेटर : IISR ABI, IIMT Business Incubator, TEXMiN TBI, AIC GIM Foundation, Navyug Navachar Foundation आदि।

2. एंजल इन्वेस्टर
जब कोई स्टार्टअप आइडिया लेवल से आगे जाकर काम करना शुरू कर चुका होता है तो एंजल इन्वेस्टर उसमें पैसा लगाते हैं। ऐसे लोग बिजनेसमैन या किसी कंपनी के फाउंडर/को-फाउंडर होते हैं। इनके पास इतनी रकम होती है कि ये किसी दूसरे स्टार्टअप में रकम इन्वेस्ट कर सकें। ये रकम के बदले स्टार्टअप में इक्विटी यानी हिस्सेदारी खरीद लेते हैं। हिस्सेदारी खरीदने से यह उनके लिए फायदे का सौदा हो जाता है और स्टार्टअप के फाउंडर को भी पैसों के अलावा इंडस्ट्री के किसी एक्सपर्ट से मदद मिलती रहती है। इसे दोनों के लिहाज से फायदे का सौदा माना जाता है।

प्री-सीड फंडिंग: जब स्टार्टअप सिर्फ आइडिया लेवल पर होता है तो उसमें फंडिंग प्री-सीड फंडिंग कहलाती है।
सीड फंडिंग: स्टार्टअप शुरू हो चुका लेकिन प्रोडक्ट/सर्विस मार्केट में न आया हो तो उसमें फंडिंग सीड फंडिंग कहलाती है।

इन बातों का रखें ध्यान
एंजल इन्वेस्टर से फंड लेते समय फाउंडर या को-फाउंडर कुछ बातों काे ध्यान में जरूर रखें ताकि बाद में टकराव की स्थिति न बनें। इसके लिए ये तरीके अपनाएं:
– कितनी इक्विटी किसके पास होगी यह पहले से अच्छी तरह से तय हो जाए तो काफी परेशानियों से बचाव हो जाता है।
– कौन किस बात का फैसला लेगा इस बात के तय हो जाने पर भी काफी आसानी हो जाती है।
– अक्सर इन्वेस्टर का इंटरेस्ट अपने लगाए पैसों की सुरक्षित वापसी से होता है। ऐसे में अगर कंपनी की बैलेंस शीट को देखकर ही किसी मसले का समाधान निकाला जाए तो बेहतर होता है।

3. एक्सेलेरेटर
ये किसी भी आइडिया को स्पीड देने का काम करते हैं। इनकी जरूरत तब पड़ती है जब स्टार्टअप आइडिया चल तो निकला है लेकिन बड़ा बनने में कुछ कसर बाकी है। इनका काम भी बिजनेस आइडिया को एक्सपर्ट दिलाने से लेकर फंड दिलाने तक का होता है। पूरी प्रक्रिया में 6 महीने तक का समय लग सकता है।

एक्सेलेरेटर के मुख्य काम:
– जो भी स्टार्टअप एक्सेलेरेटर के लिए पिच करता है तो कुछ चीजों को परखने के बाद उसे चुन लिया जाता है। इसके बाद ये स्टार्टअप से इक्विटी के लिए मोल-भाव करती हैं।
– एक्सेलरेशन स्टेज में उन्हीं आइडिया को ही गंभीरता से लिया जाता है जो एक टीम के साथ आते हैं।
– इसमें समय-समय पर सलाह देने और समस्या के समाधान के लिए इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स से व्यक्तिगत मुलाकात होती है।
– इन्वेस्टर्स और इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से संपर्क करवाते हैं जिससे अगली स्टेज में फंडिंग के लिए पिच किया जा सके।

4. वेंचर कैपिटल इन्वेस्टर
एंजल इन्वेस्टर व्यक्तिगत रूप से अपना पैसा स्टार्टअप में लगाते हैं। वहीं वेंचर कैपिटल वे फर्म होती हैं जो उन लोगों या कंपनियों का पैसा स्टार्टअप में लगाती हैं जो स्टार्टअप में इन्वेस्ट के इच्छुक होते हैं। वेंचर कैपिटल पैसा स्टार्टअप में लगाने से पहले उसका मूल्यांकन करती हैं। ये इन्वेस्टमेंट के बदले स्टार्टअप में इक्विटी यानी हिस्सेदारी लेते हैं। ज्यादातर वेंचर कैपिटल का मकसद होता है कि वे इन्वेस्ट की गई रकम का 10 से 50 गुना तक रिटर्न प्राप्त करें।
कुछ वेंचर कैपिटल फर्म: Sequoia Capital India, Chiratae Ventures, Blume Ventures, Omidyar Network India आदि।

5. क्राउड फंडिंग
क्राउड फंडिंग का मतलब होता है कि स्टार्टअप के लिए अलग-अलग लोगों से रकम लेना। इस तरह की फंडिंग में लोग छोटी-छोटी रकम इन्वेस्ट करते हैं। इस तरह की फंडिंग से मिली रकम आपको वापस नहीं करनी होती। हालांकि चाहें तो क्राउड फंडिंग के जरिए रकम इन्वेस्ट करनेवालों को अपने प्रोडक्ट/सर्विस पर स्पेशल डिस्काउंट आदि देना होता है। क्राउड फंडिंग की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

– क्राउड फंडिंग के लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि का इस्तेमाल करते हैं। इसके लिए कुछ स्पेशल प्लैटफॉर्म भी हैं जैसे- Kickstarter, Milaap, Fundable, Wishberry आदि।
– इन प्लैटफॉर्म पर आपको अपना प्रोजेक्ट लिस्ट करना होता है यानी अपने स्टार्टअप के बारे में बताना होता है। साथ ही यह भी बताना होता है कि आपको कितनी रकम की जरूरत है।
– यह भी कि आप इन्वेस्टमेंट के रूप में मिली रकम को कहां और कैसे इस्तेमाल करना चाहते हैं।

6. पीयर-टु-पीयर लेंडिंग
ये वे ऑनलाइन प्लैटफॉर्म होते हैं जो खराब क्रेडिट स्कोर (सिबिल स्कोर) वाले शख्स को स्टार्टअप के लिए लोन देते हैं। ये लोन उसी प्रकार देते हैं जैसे कोई बैंक या फाइनैंशल संस्था देती है। इन्हें गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFCs) माना जाता है। हालांकि इनका कंट्रोल रिजर्व बैंक करता है। इनकी खासियतें इस प्रकार हैं:
– लोन लेने की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होती है।
– इनकी ब्याज दर सामान्य लोन के मुकाबले कुछ ज्यादा होती है। यह सालाना 25 फीसदी तक हो सकती है।
– कुछ P2P लेंडिंग प्लैटफॉर्म: moneyclubber.com, lendenclub.com, faircent.in, lendbox.in, rupeecircle.com आदि।
-फंड और मदद के लिए जाएं: www.startupindia.gov.in

अगर आपको अपने स्टार्टअप के लिए इन्क्यूबेटर, एक्सेलेरेटर, वीसी, इन्वेस्टर आदि की तलाश है और यह नहीं पता कि ये कहां और कैसे मिलेंगे तो इन तक पहुंचना बहुत आसान है। दरअसल, केंद्र सरकार की कॉमर्स मिनिस्ट्री ने ‘इन्वेस्ट इंडिया’ नाम की एक संस्था शुरू की है जो सरकार के अहम प्रोजेक्ट ‘स्टार्टअप इंडिया’ पर काम करती है। इसका उद्देश्य स्टार्टअप को सही मार्गदर्शन देना और जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराना है। स्टार्टअप इंडिया की वेबसाइट पर के जरिए इन्क्यूबेटर, एक्सेलेरेटर, इन्वेस्टर आदि तक ऐसे पहुंचें:

– स्टार्टअप इंडिया की ऑफिशल वेबसाइट startupindia.gov.in पर जाएं।
– इसमें ऊपर की तरफ राइट साइड में Network लिखा दिखाई देगा। उस पर क्लिक करें।
– वहां एक छोटी-सी विंडो खुलेगी। इसमें लिखे Startups पर क्लिक करें।
– अब एक नई टैब में नया पेज खुलेगा। यहां आपको ऊपर की तरफ Startups, Mentors, Investors, Accelerators, Corporates, Incubators और Government Bodies लिखा दिखाई देगा। आपको जिसकी जरूरत है, उसपर क्लिक करें। यहां आपको कई ऑप्शन मिल जाएंगे।

ऐसे लें मदद
अगर आपका स्टार्टअप डेयरी से जुड़ा है तो आपको ऐसे इन्क्यूबेटर तलाशने होंगे जो डेयरी से जुड़े स्टार्टअप के प्रोडक्ट को मार्केट तक लाने में मदद करते हैं। चूंकि यहां 950 इन्क्यूबेटर्स हैं। ऐसे में डेयरी से जुड़े इन्क्यूबेटर्स को तलाशना थोड़ा मुश्किल होगा। यह काम आसान होगा फिल्टर्स की मदद से। इसके लिए यह स्टेप फॉलो करें:

– जहां आपने इन्क्यूबेटर्स पर क्लिक किया है, उसी पेज पर लेफ्ट साइड में थोड़ा ऊपर की तरफ Filters लिखा होगा। कहां आपको INDUSTRY, SECTOR, STAGE, WINNER BADGES, STATE और CITY के विकल्प दिखाई देंगे। आप जिस हिसाब से इन्क्यूबेटर्स को फिल्टर करना चाहते हैं, कर सकते हैं।
– इसमें SECTOR वाले फिल्टर पर क्लिक करें। ऊपर एक बॉक्स दिखाई देगा जिसमें Search Sector लिखा होगा। इसमें Dairy टाइप करें। आपको Dairy Farming का ऑप्शन दिखाई देगा। इस पर क्लिक कर दें। वही इन्क्यूबेटर दिखाई देंगे जो डेयरी से जुड़े स्टार्टअप को बढ़ावा देते हैं।

– अब SECTOR के ठीक नीचे लिखे STAGE पर क्लिक करें। यहां आपको चार विकल्प Ideation, Validation, Early Traction और Scaling के दिखाई देंगे। चूंकि आपका स्टार्टअप अभी आइडिया वाली स्टेज पर है तो Ideation पर क्लिक करें। प्रोडक्ट मार्केट में लाना है तो Validation पर क्लिक करें। अगर स्टार्टअप ने कमाई शुरू कर दी है और शुरू हुए एक या दो साल हो चुके हैं तो Early Traction पर क्लिक करें। स्टार्टअप जम चुका है और उसका विस्तार करना है तो Scaling पर क्लिक करें।

– इसी प्रकार आपको इन्क्यूबेटर किस राज्य और शहर में चाहिए तो इसके लिए STATE और CITY सिलेक्ट कर लें।

– सारे फिल्टर इस्तेमाल करने के बाद आपको सिर्फ वही इन्क्यूबेटर दिखाई देंगे जिनकी आपको असल में जरूरत है। मान लीजिए, आपको 5 इन्क्यूबेटर दिखाई दे रहे हैं। इनमें से हर इन्क्यूबेटर पर क्लिक करें और उसके बारे में दी गई पूरी जानकारी पढ़ें। आपको जो इन्क्यूबेटर पसंद आए, उस पर क्लिक करें।

स्टार्टअप में ये बातें देखते हैं इन्वेस्टर

जरूरी नहीं कि हर स्टार्टअप को इन्वेस्टर से रकम मिल ही जाए। किसी भी स्टार्टअप में इन्वेस्ट करने से पहले इन्वेस्टर उसमें इन बातों को देखते हैं:

1. टीम कैसी है?
हर इन्वेस्टर जानना चाहता है कि स्टार्टअप में टीम कैसी है? फाउंडर और को-फाउंडर का ऐकडेमिक या प्रफेशनल रेकॉर्ड कैसा है? जिस फील्ड में स्टार्टअप है, क्या उससे जुड़ा अनुभव स्टार्टअप के फाउंडर या को-फाउंडर के पास है या नहीं आदि। अगर कोई शख्स अभी-अभी कॉलेज से निकला है और उसने स्टार्टअप शुरू करने का प्लान बनाया है तो इन्वेस्टर ऐसे स्टार्टअप में रकम इन्वेस्ट करने से पहले उस शख्स का अकैडेमिक बैकग्राउंड देखेगा। वहीं किसी शख्स को कॉलेज से निकले 10-20 साल हो गए हैं और वह स्टार्टअप के लिए फंड चाहता है तो ऐसे शख्स का प्रफेशनल रेकॉर्ड चेक किया जाएगा।

2. मार्केट साइज क्या है?
कोई भी इन्वेस्टर स्टार्टअप में यह जरूर देखता है कि वह जो प्रोडक्ट या सर्विस देने जा रहा है या दे रहा है उसका मार्केट साइज क्या है यानी उसके कस्टमर्स का अनुपात क्या है। जिसका मार्केट साइज ज्यादा है, इन्वेस्टर उस स्टार्टअप पर इन्वेस्ट करने में ज्यादा भरोसा दिखाते हैं। मान लीजिए, कोई स्टार्टअप ऐसी वॉशिंग मशीन बना रहा है जो हवा से पानी निकालकर कपड़े धो देगी। इस मशीन की कीमत 50 लाख रुपये होगी। अब सोचिए कि ऐसी मशीन को लेने वाले कितने लोग होंगे? साधारण वॉशिंग मशीन 8-10 हजार रुपये की आ जाती है। शायद ऐसे में इस 50 लाख की वॉशिंग मशीन को खरीदने वाले लोग न के बराबर ही होंगे। इसलिए इन्वेस्टर ऐसे स्टार्टअप में रकम इन्वेस्ट करने से बचेंगे क्योंकि इसका मार्केट साइज बहुत छोटा है।

3. बिजनेस प्लान क्या है?
इन्वेस्टर के पास इन्वेस्टमेंट लेने जा रहे हैं तो वह रकम देने से पहले आपके स्टार्टअप के बिजनेस प्लान के बारे में पूछ सकता है। वह पूछ सकता है कि आइडिया से प्रोडक्शन कैसे करोगे, कितना खर्च आएगा, मार्केटिंग कैसे करोगे, कस्टमर कौन होंगे आदि।

ये जांच भी करवा सकते हैं

Due Diligence:
किसी कंपनी की फाइनैंशल रेकॉर्ड्स की जांच पड़ताल कराना ही बिजनेस की भाषा में ड्यू डिलिजेंस (Due Diligence) कहलाता है। इसमें ऑडिट, बैलेंस शीट आदि शामिल होते हैं। इन्वेस्टर रकम देने से पहले उसके स्टार्टअप या कंपनी की ड्यू डिलिजेंस करवा सकता है।
Data Room: इन्वेस्टर स्टार्टअप या कंपनी का डेटा रूम मांग सकता है। डेटा रूम वह डिजिटल फोल्डर होता है जिसमें स्टार्टअप या कंपनी के लीगल, फाइनैंशल ट्रांजेक्शन आदि डॉक्यूमेंट्स मौजूद होते हैं।

स्टार्टअप की इन्वेस्ट से पहले की तैयारी
स्टार्टअप के फाउंडर जब भी किसी इन्वेस्टर के पास जाएं तो अपने बिजनेस की बहुत छोटी प्रेजन्टेशन बनाकर जाएं। बिजनेस की भाषा में शॉर्ट प्रेजन्टेशन को Pitch Deck कहते हैं। Pitch Deck तैयार करते समय इन बातों का ध्यान रखें:
– पावर प्रजेंटेशन में 10 से ज्यादा स्लाइड न हों।
– हर स्लाइड में कंटेंट कम से कम और पॉइंट्स में हो।
– कंटेंट के पॉइंट का फॉन्ट साइज कम से कम 30 हो।
– Pitch यानी कंपनी से जुड़ी स्पीच 20 मिनट से ज्यादा की न हो।

इन्वेस्टर बनाते हैं कन्वर्टेबल नोट

अगर कोई इन्वेस्टर किसी ऐसे स्टार्टअप में रकम इन्वेस्ट कर रहा है जो अभी शुरू नहीं हुआ है या शुरुआती दौर में है और उस स्टार्टअप की वैल्यूएशन पता करना अभी संभव नहीं है। वैल्यूएशन का मतलब है कि स्टार्टअप या कंपनी की कुल कीमत कितनी है। ऐसे में इन्वेस्टर उस स्टार्टअप में रकम के बदले इक्विटी नहीं ले पाते। यहां वे स्टार्टअप के फाउंडर के साथ एक कन्वर्टेबल नोट बनाते हैं। कन्वर्टेबल नोट का मतलब है कि इन्वेस्टर शुरू में रकम के बदले फाउंडर से यह लिखवाता है कि 2 या 3 साल बाद जब उसके स्टार्टअप की जो वैल्यू होगी, उसकी एक तय इक्विटी यानी हिस्सा इन्वेस्टर को देगा और उसमें भी विशेष छूट मिलेगी।

यहां भी मिलेंगे इन्वेस्टर

Inflection Point Ventures, LetsVenture, AngelList India, SeedInvest, Angel Investment Network आदि।

एक्सपर्ट से पूछें सवाल

स्टार्टअप के लिए फंड से संबंधित अगर आपका कोई सवाल है तो हमें sundaynbt@gmail.com पर कल (सोमवार) रात 12 बजे तक भेजें। सब्जेक्ट में startup part 9 लिखें। चुनिंदा सवालों के जवाब हम एक्सपर्ट से पूछकर अगले संडे को इसी पेज पर छापेंगे।

एक्सपर्ट पैनल
– प्रिया रावत, सीओओ, Invest India
– कार्तिक शर्मा, नैशनल चेयरमैन, AIMA-YLC
– डॉ. सुनील शेखावत, सीईओ, Sanchi Connect
– संदीप व्यास, फाउंडर, Mild Cares
– मोना सिंह, को-फाउंडर, India Accelerator
– पंकज शर्मा, को-फाउंडर और डायरेक्टर, Log9 Materials
– अर्जुन सिन्हा रॉय, को-फाउंडर और सीईओ, iRasus Technologies

नोट: अगले इशू में पढ़ेंगे स्टार्टअप की दुनिया में सफल महिलाओं की कहानी।



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